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वोडाफ़ोन और आइडिया के विलय के बाद अब 40 करोड़ से भी ज़्यादा ग्राहकों के साथ यह देश की सबसे बड़ी मोबाइल फ़ोन कंपनी बन गई है. एयरटेल अब देश की दूसरी सबसे बड़ी मोबाइल फ़ोन कंपनी है. टेलीकॉम सेक्टर में हो रहे इस बदलाव से 100 करोड़ से ज़्यादा ग्राहक प्रभावित होंगे. पिछले दो साल में मोबाइल पर कॉल और डेटा के लिए जो कीमतों में मारकाट मची थी, अब उसके दूसरे चरण की शुरुआत हो सकती है. कुछ लोगों का मानना है कि अब तीन सबसे बड़ी कंपनियों में पोस्टपेड ग्राहकों को लेकर होड़ मच सकती है. अब तक जिओ सस्ती कॉल दे कर ग्राहकों को बटोरने की कोशिश कर रहा था. लेकिन दूसरे दौर में अब वो पोस्टपेड ग्राहकों को अपनी लुभावनी स्कीम देकर अपनी ओर खींचने की कोशिश कर सकता है.
कुछ महीने पहले जिओ ने अपनी पोस्टपेड स्कीम को भी लॉन्च किया था.

प्रीपेड Vs पोस्टपेड ग्राहक
लेकिन पोस्टपेड ग्राहकों के लिए होड़ में विज्ञापनों का सहारा नहीं लिया जाएगा. उसके लिए बड़ी कंपनियों को लुभावने ऑफ़र दिए जाएंगे और उनके सभी ग्राहक एकमुश्त नए मोबाइल फ़ोन ऑपरेटर के साथ जुड़ सकते हैं. बिज़नेस की दुनिया में ऐसा होना कोई नई बात नहीं है.आम तौर पर माना जाता है कि पोस्टपेड ग्राहक अपने महीने के फ़ोन के बिल की चिंता नहीं करते हैं और अक्सर उनकी कंपनी उनके बिल के पैसे देती है. इसलिए महीने के अंत में प्रीपेड ग्राहक के मुकाबले उनका बिल भी कहीं ज़्यादा होता है. देश के 100 करोड़ से कुछ ज़्यादा मोबाइल फ़ोन ग्राहक में से क़रीब 90 फ़ीसदी प्रीपेड ग्राहक हैं.
अपने फ़ोन को रिचार्ज करने के लिए, औसतन ये लोग हर महीने 150 रुपये से भी कुछ कम खर्च करते हैं. सितम्बर 2016 में जब जिओ ने अपनी सर्विस लॉन्च की थी तो ऐसे ही ग्राहकों को अपनी सस्ती से सस्ती सर्विस बेचने की कोशिश की थी.
जिओ और एयरटेल की आगे की योजना
टेलीकॉम कंपनियों की संख्या कम होने के कारण कुछ नौकरियां ज़रूर कम हो सकती हैं. फ़िलहाल वोडाफ़ोन और आइडिया दोनों के अपने ब्रांड और स्टोर देश भर में दिखाई देंगे. लेकिन जैसे-जैसे ये विलय सफल होता जाएगा, दोनों कंपनियां दो अलग-अलग ब्रांड पर पैसे खर्च करना बंद कर देगी. जैसे ही दोनों कंपनियां एक ब्रांड पर काम करेंगी, कुछ नौकरियां ख़त्म हो सकती हैं. लेकिन इनकी संख्या कुछ हज़ार से ज़्यादा नहीं होगी.
जिओ अब बहुत तेज़ी से फ़िक्स्ड लाइन ब्रॉडबैंड के धंधे में भी अपनी सर्विस शुरू कर रहा है. इस सर्विस के लिए देश भर में उसकी टक्कर एयरटेल से होगी क्योंकि वोडाफ़ोन और आइडिया ये सर्विस नहीं देते हैं. जिओ की कोशिश है कि स्मार्ट टेलीविज़न के लिए सभी तरह की फ़िल्म और ब्रॉडबैंड पर कंटेंट घरों तक पहुंचाए. जैसा कि मोबाइल सर्विस के साथ जिओ ने किया था, सस्ती ब्रॉडबैंड सर्विस की मदद से वो करोड़ों घरों तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है.

देश के बड़े शहरों में ब्रॉडबैंड सर्विस देने वाली सैकड़ों छोटी कंपनियां हैं. उनके लिए जिओ और एयरटेल जितनी सस्ती सर्विस देना मुश्किल हो सकता है. अगर आप उसकी सर्विस ही लेना चाहेंगे तो उन्हें क़ीमतें कम करने को भी कह सकते हैं. जिओ के मुफ्त कॉल देने के साल भर के अंदर ही आइडिया और वोडाफ़ोन पर कुछ ऐसा असर हुआ कि दोनों कंपनियों ने एक दूसरे के साथ विलय करने का फ़ैसला कर लिया.
जिओ के लॉन्च होने के बाद चारों कंपनियों के बीच सस्ती से सस्ती दरों पर कॉल और डाटा सर्विस देने के लिए होड़ मची हुई थी. मोबाइल और फिक्स्ड लाइन ब्रॉडबैंड के इस घमासान में जब एक या दो कंपनी दूसरों से आगे निकल जाएगी तो उसके बाद क़ीमतें ऊपर जाने की उम्मीद की जा सकती है. लेकिन अगले तीन से चार साल में इसकी संभावना कम लगती है.
एक बात तो साफ़ है - अगर आप मोबाइल पर डेटा इस्तेमाल करते हैं तो अब भी बहुत सस्ती सर्विस की उम्मीद कर सकते हैं. जब तक ब्रॉडबैंड ओर मोबाइल डेटा का बाज़ार बढ़ रहा है तब तक कंपनियों से ऐसी रेवड़ी की उम्मीद की जा सकती है.
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खास बातें
नई दिल्ली: दिल्ली महिला आयोग ने रोहिणी में एक घर से 50 साल की महिला को छुड़ाया है जिसको उसके भाई ने दो साल से घर में कैद करके रखा था. महिला हेल्पलाइन 181 पर सूचना मिली कि एक महिला घर में कैद है. इस पर आयोग की मोबाइल हेल्पलाइन काउंसलर तुरंत वहां भेजी गईं. जब आयोग की टीम ने घर के मालिक से गेट खोलने को कहा तो भाई की पत्नी ने मना कर दिया. उसने आयोग के लोगों को गालियां देना शुरू कर दिया.
आयोग की टीम ने थाने में एसएचओ से बात की जिन्होंने सहायता के लिए पुलिस की एक टीम भेजी. आयोग और पुलिस की टीम फिर उस घर पर पहुंचे, मगर उस महिला ने गेट खोलने से इनकार कर दिया और पुलिस को भी गलियां दीं. गेट खोलने की बहुत कोशिश की गई मगर गेट नहीं खुला. आखिरकार आयोग की टीम पुलिस के साथ पड़ोसी की छत से होकर उस घर में पहुंची जहां पर 50 वर्षीय महिला अपनी ही गंदगी में पड़ी हुई थी. उसकी हालत बहुत खराब थी. वह इस कदर भुखमरी की शिकार रही कि हड्डियों का ढांचा मात्र रह गई है. छत पर महिला का मल फैला हुआ था. उसको खुले में छत पर रखा गया था जिस पर कोई कमरा या शौचालय नहीं था.
महिला के दूसरे भाई ने बताया कि उसकी बहन पूजा (नाम परिवर्तित), उम्र 50 साल मानसिक रूप से पूरी तरह ठीक नहीं है. वह अपनी मां के साथ उनके घर में रहती थी. उसने बताया कि मां की मृत्यु के बाद वह छोटे भाई के साथ रह रही थी. उसने बताया कि उसका भाई उस महिला का ठीक से ध्यान नहीं रखता था और उसके साथ उसका परिवार अमानवीय व्यवहार करता था. इसके अलावा महिला ने बताया कि पिछले दो साल से उसको चार दिन में एक ही बार रोटी दी जाती थी. उसका भाई किसी को भी उससे मिलने नहीं देता था.
इस मामले में रोहिणी सेक्टर 7 थाने में एफआईआर दर्ज हो गई है. दिल्ली महिला आयोग की टीम महिला को रोहिणी के आम्बेडकर हॉस्पिटल लेकर गई जहां उसका इलाज चल रहा है. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल और सदस्या किरण नेगी महिला से अस्पताल में मिलीं. स्वाति मालीवाल ने कहा, “जिस तरह से इस महिला को अमानवीय तरीके से रखा, उसको देखकर मुझे बहुत धक्का लगा. अभी वह केवल 50 साल की है, जबकि देखने में उसकी उम्र 90 वर्ष से ज्यादा लग रही है. वह इतनी ज्यादा लाचार थी कि वह खुद का ख्याल रखने में भी असमर्थ थी. इतने दिनों तक वह खुली छत पर अपनी गंदगी में ही पड़ी रही. महिला के भाई और उसकी पत्नी को तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए और उन पर मुकदमा चलाना चाहिए. मुझे दुःख है कि इतने दिनों तक किसी भी पड़ोसी ने इसकी सूचना पुलिस या आयोग को नहीं दी. मैं सभी लोगों से अपील करती हूं कि अगर उनके आसपास ऐसी कोई घटना सामने आती है तो तुरंत इसकी सूचना दें ताकि ऐसी और लड़कियों और महिलाओं को बचाया जा सके.”

सोशल मीडिया पर इन दिनों एक मैसेज तेजी से वायरल हो रहा है। इसमें कहा गया है कि अगर किसी नौकरीपेशा व्यक्ति की सड़क दुर्घटना में मौत होती है, तो सरकार उसके परिवार को मुआवजा देने के लिए बाध्य है। फेसबुक यूजर ज़ाकिर शोहरब ने यह मैसेज पोस्ट किया था, जिसे अब तक 57 हज़ार बार शेयर किया जा चुका है। चूंकि इनकम टैक्स और इससे जुड़ी चीजों के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं होती है, तो सोशल मीडिया स्कूल के विद्यार्थियों को जैसे ही यह नया ज्ञान मिला, उन्होंने फटाफट यह ज्ञान बांटना शुरू कर दिया।
क्या है वायरल मैसेज में..

क्या है सच..
फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स के अनुसार, सड़क दुर्घटना होने पर परिवार को मुआवजा मिलने के लिए मरने वाले व्यक्ति की ओर से आईटीआर भरे जाने या फिर न भरे जाने का कोई लेना-देना नहीं है। अगर व्यक्ति नौकरीपेशा है और उसकी मृत्यु सड़क दुर्घटना में होती है तो उसका परिवार मोटर व्हीकल ट्राइब्यूनल में मुआवजे का दावा कर सकता है। इसके बाद ट्राइब्यूनल तय करेगा कि परिवार को मुआवजा दिया जाना चाहिए या नहीं और दिया जाना चाहिए तो कितना।
मुआवजे की राशि को तय करते समय मरने वाले व्यक्ति की आय को भी एक पैमाना माना जाता है। लेकिन इस ट्राइब्यूनल में सरकार कोई पार्टी नहीं होती है। इसलिए सरकार का इससे लेना-देना नहीं होता है। यह केस इंश्योरेंस कंपनी और पीड़ित पक्ष के बीच होता है।
हमारी पड़ताल में वायरल हो रहा यह मैसेज झूठा साबित हुआ।