Saturday, 06 December 2025

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किसी की 'बुरी नज़र' में कितनी ताक़त होती है......

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'बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला…' ये जुमला आपने अक्सर ऑटो, रिक्शा, ट्रक या किसी अन्य वाहन के पीछे लिखा देखा होगा। मन में कई बार सवाल भी उठा होगा कि नज़र बुरी या अच्छी कैसे हो सकती है। लेकिन दुनिया भर में इसे लेकर पुख्ता यक़ीन है। भारत में तो बुरी नज़र के प्रकोप से बचने के लिए तरह-तरह के उपाय भी किए जाते हैं। कोई गाड़ी पर उल्टी चप्पलें लटकाता है, तो कोई नींबू-हरी मिर्च लटकाता है। वहीं कोई बुरी नज़र का असर ख़त्म करने के लिए लाल मिर्चें जला डालता है। इस तरह के उपायों की लिस्ट काफ़ी लंबी है। बुरी नज़र का असर ख़त्म करने वाली आँख ने गुज़रे एक दशक में फ़ैशन वर्ल्ड में भी अपनी धाक जमाई है। अमेरिका रिएलिटी टेलीविज़न की मशहूर हस्ती किम कर्डाशियां को कई मौक़ों पर नीली आँख वाले मोतियों की ब्रेसलेट और माला के साथ फ़ोटो खिंचाते देखा गया है।
 
शैतानी आँख का डर
 
फ़ैशन मॉडल गिगी हेडिड ने भी लोगों के बीच बढ़ते इस क्रेज़ को भुनाने के लिए साल 2017 में एलान किया कि वो बहुत जल्द आई-लव जूतों की रेंज मार्केट में उतारने वाली हैं। जब बड़ी सेलेब्रिटिज़ ने प्रचार करना शुरू किया, तो बुरी नज़र से बचाने वाले मोतियों के इस्तेमाल से ब्रेसलेट और हार बनाने के लिए ऑनलाइन ट्यूटोरियल भी शुरू हो गए।

बहरहाल, ये बात तो हुई लोगों के यक़ीन का कमर्शियल फ़ायदा उठाने की। लेकिन सच यही है कि इवल आई यानी शैतानी आँख ने इंसान की कल्पना शक्ति पर सदियों से अपना क़ब्ज़ा जमा रखा है। शैतान की आँख का तसव्वुर कब, कहाँ और कैसे शुरू हुआ जानने से पहले तावीज़ और शैतान की आँख का फ़र्क़ समझना होगा।
 
तावीज़ हर बुरी चीज़ से बचाव के लिए हज़ारों वर्षों से पहना जा रहा है। वक़्त के साथ इसके इस्तेमाल में बहुत से बदलाव आए, लेकिन इसका इस्तेमाल कब और कहाँ शुरू हुआ, पुख्ता तौर पर पता लगाना मुश्किल है। जबकि शैतानी आँख वाले तावीज़ का इस्तेमाल बुरी नज़र रखने वालों का बुरा करने के लिए पहना जाता है।
 
माना जाता है जिस इंसान को भरपूर सफलता मिल जाती है, उसके दुश्मन भी ख़ूब पैदा हो जाते हैं। लेकिन शैतानी आँख ऐसे लोगों को उनके मक़सद में कामयाब होने नहीं देती। प्राचीन ग्रीस रोमेंस एथियोपिका में हेलियोडोरस ऑफ़ इमिसा ने लिखा है कि जब किसी अच्छी चीज़ को कोई बुरी नज़र से देखता है, तो आस-पास के माहौल को घातक वाइब्स से भर देता है। 
फ़्रेडरिक थॉमस एलवर्थी का दा ईविल आई- द क्लासिकल अकाउंट ऑफ़ एन एनशियंट सुपरस्टीशन को ईविल-आई या शैतानी आँख से संबंधित क़िस्से कहानियों का सबसे अच्छा संग्रह माना गया है। इस किताब में बहुत-सी संस्कृतियों में प्रचलित अंधविश्वास और उनसे जुड़ी निशानियों का ज़िक्र है।

इस किताब में आपको ग्रीक चुड़ैल के घूरने की कहानी से लेकर वो लोक कथाएं भी मिल जाएंगी जिनमें भूत-प्रेत के देखने भर से इंसान को घोड़ा और उसे पत्थर का बना देने तक का ज़िक्र मिलता है।
 
सदियों पुरानी है इसकी परंपरा
 
दिलचस्प बात है कि आँख के निशान का संबंध बुतपरस्ती वाले मज़हबों से है, लेकिन आसमानी या इब्राहिमी मज़हबों की किताबों जैसे क़ुरान और बाइबिल में भी इसका ज़िक्र मिलता है। बुरी नज़र, शैतानी आँख, तावीज़ वग़ैरह का संबंध सीधे तौर पर अंधविश्वास से है। लेकिन कुछ दार्शनिक इसका संबंध विज्ञान से जोड़कर देखते हैं। इस फ़ेहरिस्त में सबसे पहला नाम ग्रीक दार्शनिक प्लूटार्क का है। वो इसका वैज्ञानिक पहलू बताते हुए लिखते हैं कि इंसानी आँख में से ऊर्जा की किरणें निकलती हैं जो नज़र नहीं आतीं। इन किरणों में किसी भी छोटे जानवर या बच्चे को मार देने की ताक़त होती है। एक क़दम और आगे बढ़ते हुए वो कहते हैं, कि कुछ लोगों में तो सामने वाले को अपना मुरीद बना लेने तक की ताक़त होती है।

सबसे ज़्यादा किसी का नुक़सान करने की क्षमता नीली आंखों से निकलने वाली किरणों में होती है। लगभग सभी संस्कृतियों की लोक कहानियों में बुरी नज़र से विनाश होने का ज़िक्र आम है। लेकिन कुछ संस्कृतियों में बुरी नज़र रखना ही ख़राब माना गया है। वो इसे अभिशाप मानते हैं। मिसाल के लिए दार्शनिक एनवर्थी पोलैंड की एक लोक कथा का हवाला देते हुए कहते हैं कि एक आदमी की नज़र में दूसरों का बुरा करने वाली किरणें बहुत ज़्यादा थीं। जब उसे इसका अंदाज़ा हुआ तो उसने अपने अज़ीज़ों के भले के लिए अपनी एक आँख ही निकलवा दी। तुर्की की इस्तांबुल यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफ़ेसर डॉक्टर नेस येल्दरिन का कहना है कि आँख वाले तावीज़ का सबसे पहला नमूना 3300 ई.पू में मिलता है। मेसोपोटामिया के सबसे पुराने शहर तल बराक में खुदाई के वक़्त कुछ तावीज़ मिले थे। ये तावीज़ संगमरमर की मूर्तियों के शक्ल के थे, जिन पर जगह-जगह कुरेद कर आँख उकेरी गई थी।

बचाव के लिए क्या-क्या करते थे लोग
 
जहाँ तक नीली आँख का ताल्लुक़ है तो ये मिस्र की चमकीली मिट्टी से आयी है, जिसमें ऑक्साइड की मात्रा ज़्यादा होती है। तांबे और कोबाल्ट के साथ जब इसे पकाया जाता है तो नीला रंग आ जाता है। येल्दरिन आज के दौर में नज़र लगने की मान्यता को प्राचीन मिस्र से जोड़कर देखते हैं। खुदाई में यहां होरोस की आँख वाले बहुत से पेंडेंट मिले हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार होरोस मिस्री लोगों का आसमानी देवता था। उसकी दाईं आँख का संबंध सूरज से था। लोग उसे शुभ मानते थे और बुरी नज़र से बचाव के लिए अपने साथ रखते थे।

तुर्की के पूर्व जनजाति के लोग भी नीले रंग से खासा लगाव रखते थे। इस रंग का संबंध उनके आसमानी देवता से था। नीली आँख वाले मोती फ़ोनेशियन, असीरियन, ग्रीक, रोमन और सबसे ज़्यादा ऑटोमन साम्राज्य में इस्तेमाल हुए। भूमध्य सागर के आस-पास के द्वीपों में इन्हें कारोबार के लिहाज़ से लाया गया था। लेकिन यहां से ये दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी फैल गए।
 
मिस्री लोग आज भी अपने जहाज़ों पर हिफ़ाज़त के लिए ईविल-आई बनवाते हैं। तुर्की में आज भी बच्चे की पैदाइश पर बुरी नज़र से बचाने के लिए शैतानी आँख वाला तावीज़ पहनाया जाता है। बहरहाल इसे लेकर मान्यताएं चाहें जो भी रही हों, पर सच यही है कि इसने दुनिया की तमाम सभ्यताओं पर असर डाला है। और अब तो शैतानी आँख ने फ़ैशन की दुनिया में भी सिक्का जमा लिया है।

 
लेकिन यहां गौर करने वाली बात है कि किम कर्डाशियां हों या गिगी हेडिड, दोनों सेलेब्रिटी ऐसी जगह से ताल्लुक़ रखती हैं, जहाँ ईविल-आई को लेकर पुख्ता यक़ीन है।
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शादीशुदा ज़िंदगी को कैसे बर्बाद कर देता है एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर....

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हम सभी जानते हैं कि शादी के बाद एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखने से आपका रिश्ता प्रभावित होता है। ये सभी चीज़ें लोगों के मन में शादी के प्रति घृणा पैदा करती हैं। जब हम ऐसी घृणास्पद गतिविधियों में शामिल होते हैं तो हम इस बारे में चिंता करते हैं कि समाज के लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे?

जब आप एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में रहते हैं तो कई कारण ऐसे भी हैं जो गलत होते हैं। एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का मतलब है कि आप किसी और से भावनात्मक और शारीरिक संतुष्टि पाने के लिये खोज करते हैं, जिसकी आपको शादी से पहले उम्मीद थी। 

effect of extramarital affairs

 एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर शादी के लिये एक बुरे सपने जैसा है। एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर किसी ऐसे चीज़ में खुद को प्रकट करने का एक तरीका है, जो आपके और आपके साथी के लिये अस्वास्थ्यकर है। इसका क्या प्रभाव पड़ता है?

हम सब उन प्रभावों के बारे में जानते हैं जो हमेशा समाज में रहे हैं। लेकिन विवाह को प्रभावित करने वाले अन्य प्रभाव क्या हैं? बड़े प्रभाव क्या हैं जिन्हें हम महसूस तक नहीं करते हैं? यह आलेख उन कारणों पर आधारित है जो सामने दिखाई नहीं देते हैं। अगर आप शादीशुदा हैं और आप एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करते हैं तो यह धोखा देने का सबसे बड़ा कारण है। विवाह के लिये एक अतिरिक्त वैवाहिक मामला (एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर) एक बुरा सपना क्यों है?

1. भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है

जब किसी शादीशुदा जोड़े में से एक साथी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करता है तो दूसरा साथी भावनात्मक रूप से प्रभावित होता है। कभी-कभी भावनात्मक झटका इतना बुरा होता है कि आप साथी का सामना तक नहीं कर पाते हैं।

यह साथी के दिमाग में डर को पैदा करता है। एक्स्ट्रा मैरिटल किसी भी शादी के लिये एक विनाश है। इंसान जब टूट जाता है तो वह भावनाओं को हटा देता है और डिप्रेशन में चला जाता है। यह एक शोध से पता चला है कि आमतौर पर यह उन कपल के साथ सबसे ज़्यादा देखा जाता है जो अपने साथी से बहुत अधिक जुड़े हुए और उन पर निर्भर होते हैं।

एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करने वाला साथी दूसरे साथी का विश्वास तोड़ देता है। एक बार साथी को आपके दूसरे रिश्ते के बारे में पता चल जाता है, तो साथी का विश्वास आप पर खत्म हो जाता है। धोखेबाज साथी पर वापस से विश्वास करना मुश्किल हो जाता है।\

3. आत्म-सम्मान कम हो जाना

धोखेबाज़ साथी ने अपना आत्म-सम्मान खो दिया है और पछतावा भरा हुआ है। दूसरा साथी धोखेबाज़ साथी के लिये अपने प्यार को खत्म कर देता है। अपराध उनके लिये असली हो जाता है और उनके लिये स्थिति को समझना मुश्किल हो जाता है। वे अंततः स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं लेकिन आत्म-सम्मान के नुकसान को भरने में काफी समय लगता है।

4. पारिवारिक बंधनों को तोड़ता है

जो धोखाधड़ी करता हैं उन्हें महसूस होता है कि परिवारवाले उनसे दूर हो रहे हैं। जिस घर को आपने अपनी शादी और परिवार के प्यार से बनाया था वो अब टूट रहा है। यह अफेयर आपके साथी और परिवार के बीच बंधन को तोड़ता है। फिर व्यक्ति पारिवारिक संबंध में खुश नहीं रह पाता है। वह परिवार के प्रति विश्वास खो देता है और यह केवल आपके अफेयर की वजह से होता है।

5. दिशानिर्देश को धुंधला कर देना

जब कोई साथी अपने पार्टनर को धोखा देने के बारे सोचता है तो वह उसे बचाने की कोशिश करते हैं। उन्हें जब दर्द होता है, तब उन्हें महसूस होता है कि उनका वैवाहिक जीवन और प्रेम संबंध इस वजह से बर्बाद हो गया था। इससे उनमें धुंधला अभिविन्यास दिखने लगता है। यह शादी में सबसे बड़े दुस्वप्न में से एक है। धोखेबाज़ साथी के साथ अलग-अलग तरीकों की भावना जो एक बार सपोर्टिव थी लेकिन अब भयानक हो जाती है।

 6. अकेलापन

अकेलापन एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की ही देन है। यह आपको अपने दिमाग के गहरे कोने के कमरे में डाल देता है और आपको बंद कर देता है। धोखाधड़ी करने वाले साथी के पास से खुशी चली जाती है और अकेलापन रह जाता है। अकेलापन साथी के जीवन को सूना बना देता है। परामर्श और इच्छाशक्ति ये दो सहायताएं हैं, जिनपर वे भरोसा करते हैं। कुछ कारणों के दुरुपयोग की वजह से आपका जीवन भयावह चरण में समाप्त होता है।

ये 6 प्रमुख कारण हैं जिसकी वजह से शादी के बाद एक्स्ट्रा मेटेरियल अफेयर एक दुस्वप्न साबित होता है।

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 यात्रा में शामिल हुए एक को जुमे की के दौरान मस्जिद से निकाले जाने के मामले में 3 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.......

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बागपत (उप्र)। बागपत जिले के रंछाड़ गांव में यात्रा में शामिल हुए एक को जुमे की के दौरान मस्जिद से कथित तौर पर निकाले जाने के मामले में 3 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। बिनौली थाना क्षेत्र के रंछाड़ गांव निवासी युवक बाबू खां का आरोप है कि उसे कावड़ यात्रा में शामिल होने के कारण मस्जिद से निकाला गया, वहीं आरोपियों का दावा है कि खां को शराब के नशे होने की वजह से मस्जिद से बाहर किया गया। पुलिस के मुताबिक दोनों पक्षों के बीच हत्या के किसी मुकदमे को लेकर पहले से ही रंजिश है।
 
पुलिस सूत्रों ने खां द्वारा दी गई तहरीर के हवाले से बताया कि खां हरिद्वार से पिछले दिनों कावड़ लाया था और मंदिरों में जलाभिषेक भी किया था। शुक्रवार को वह जुमे की नमाज अदा करने गांव की मस्जिद में गया तो कुछ लोगों ने उसे कथित तौर पर अपमानित करते हुए धक्के देकर निकाल दिया और हाथापाई तथा गाली-गलौज की। इस मामले में बाबू उर्फ लतीफ, चांद और साबिर नामक व्यक्तियों के खिलाफ शुक्रवार को मुकदमा दर्ज करके उन्हें शनिवार को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि एक अन्य आरोपी फरार है।
 
इस मामले के संबंध में शनिवार को गांव स्थित शिव मंदिर परिसर में हिन्दू समाज की पंचायत हुई। बताया जाता है कि पंचायत के बाद बाबू खां का कावड़िये के वेश में कावड़ के साथ जुलूस निकाला गया। घटना को लेकर हिन्दू जागरण मंच के जिलाध्यक्ष दीपक बामनौली ने विरोध जताते हुए कहा है कि मंच बाबू खां के साथ है और अगर उसे तंग किया गया तो मंच सहन नहीं करेगा। हलका इंस्पेक्टर देवेन्द्र बिष्ट ने बताया कि गांव में शांति है और पुलिस दोनों पक्षों के साथ-साथ अन्य गणमान्य लोगों से बातचीत कर सुलह के प्रयास में जुटी है।
 
उन्होंने यह भी बताया कि दोनों पक्षों के बीच एक मुकदमे को लेकर पहले से ही था। मामला संदिग्ध लग रहा है। आरोपियों का दावा है कि बाबू खां शुक्रवार को शराब के नशे में मस्जिद आया था इसीलिए उसे मस्जिद में जाने से रोका गया था। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
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नाग जाति की उत्पत्ति और उनकी कन्याओं के बारे में रोचक जानकारी.....

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भारत में पाई जाने वाली नाग जातियों और नाग के बारे में बहुत ज्यादा विरोधाभास नहीं है। भारत में आज नाग, सपेरा या कालबेलियों की जाति निवास करती है। यह भी सभी कश्यप ऋषि की संतानें हैं। नाग और सर्प में भेद है। पुराणों के अनुसार प्राचीनकाल में नागों पर आधारित नाग प्रजाति के मानव कश्मीर में निवास करते थे। बाद में ये सभी के लोग झारखंड और छत्तीसगढ़ में आकर बस गए थे, जो उस काल में दंडकारण्य कहलाता था। सपेरा जाति का कालबेलिया नृत्य आज भी लोकप्रिय है।  
 
नागों के अष्टकुल : कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से उन्हें 8 पुत्र मिले जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं- 1.अनंत (शेष), 2.वासुकि, 3.तक्षक, 4.कर्कोटक, 5.पद्म, 6.महापद्म, 7.शंख और 8.कुलिक। इन्हें ही नागों का प्रमुख अष्टकुल कहा जाता है। कुछ पुराणों के अनुसार नागों के अष्टकुल क्रमश: इस प्रकार हैं:- वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय। कुछ पुराणों अनुसार नागों के प्रमुख पांच कुल थे- अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला। शेषनाग ने भगवान विष्णु तो उनके छोटे भाई वासुकी ने शिवजी का सेवक बनना स्वीकार किया था।  
 
उल्लेखनीय है कि नाग और सर्प में फर्क है। सभी नाग कद्रू के पुत्र थे जबकि सर्प क्रोधवशा के। कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने या सर्प, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किए।>  
 
भारत में उपरोक्त आठों के कुल का ही क्रमश: विस्तार हुआ जिनमें निम्न नागवंशी रहे हैं- नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा इत्यादी नाम के नाग वंश हैं।>  
 
अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है, जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म प्रसिद्ध हैं। नागों का पृथक पुराणों में बताया गया है। अनादिकाल से ही नागों का अस्तित्व देवी-देवताओं के साथ वर्णित है। जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेष छत्र होता है। असम, नागालैंड, मणिपुर, केरल और आंध्रप्रदेश में नागा जातियों का वर्चस्व रहा है। अथर्ववेद में कुछ नागों के नामों का उल्लेख मिलता है। ये नाग हैं श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर (करैत), घास के रंग का (उपतृण्य), पीला (ब्रम), असिता रंगरहित (अलीक), दासी, दुहित, असति, तगात, अमोक और तवस्तु आदि।  
 
नागकन्या : कुंती पुत्र अर्जुन ने पाताल लोक की एक नागकन्या से विवाह किया था जिसका नाम उलूपी था। वह विधवा थी। अर्जुन से विवाह करने के पहले उलूपी का विवाह एक बाग से हुआ था जिसको गरूड़ ने खा लिया था। अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र थे अरावन जिनका दक्षिण भारत में मंदिर है और हिजड़े लोग उनको अपना पति मानते हैं। भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह भी एक नागकन्या से ही हुआ था जिसका नाम अहिलवती था और जिसका पुत्र वीर योद्धा बर्बरीक था।
 
 नागलोक : सात पाताल है- 1. अतल, 2. वितल, 3. सुतल, 4. रसातल, 5. तलातल, 6. महातल और 7. पाताल।....इनमें से महातल में कश्यप की पत्नी कद्रू से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का 'क्रोधवश' नामक एक समुदाय रहता है। उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग रहते हैं। उनके बड़े-बड़े फन हैं। वासुकी नाग भी पाताल लोक के नागलोक में रहता है।
 
 पौराणिक कथाओं के अनुसार पाताल लोक में कहीं एक जगह नागलोक था, जहां मानव आकृति में नाग रहते थे। कहते हैं कि 7 तरह के पाताल में से एक महातल में ही नागलोक बसा था, जहां कश्यप की पत्नी कद्रू और क्रोधवशा से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले नाग और सर्पों का एक समुदाय रहता था। उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग थे। 
 
नाक कुल की भूमि : यह सभी नाग को पूजने वाले नागकुल थे इसीलिए उन्होंने नागों की प्रजातियों पर अपने कुल का नाम रखा। जैसे तक्षक नाग के नाम पर एक व्यक्ति जिसने अपना 'तक्षक' कुल चलाया। उक्त व्यक्ति का नाम भी तक्षक था जिसने राजा परीक्षित की हत्या कर दी थी। बाद में परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने तक्षक से बदला लिया था।
 
'नागा आदिवासी' का संबंध भी नागों से ही माना गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंश तथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में मध्यप्रदेश के विदिशा पर शासन करने वाले नाग वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि आदि का उल्लेख मिलता है।
 
पुराणों अनुसार एक समय ऐसा था जबकि नागा समुदाय पूरे भारत (पाक-बांग्लादेश सहित) के शासक थे। उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों पर अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं। तक्षक, तनक और तुश्त नागाओं के राजवंशों की लम्बी परंपरा रही है। इन नाग वंशियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के लोग थे।
 
 नाग और नाग जाति : जिस तरह सूर्यवंशी, चंद्रवंशी और अग्निवंशी माने गए हैं उसी तरह नागवंशियों की भी प्राचीन परंपरा रही है। महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था। ये लोग सर्प पूजक होने के कारण नागवंशी कहलाए। कुछ विद्वान मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को 'नागभाषा' कहते हैं। 
  
एक सिद्धांत अनुसार ये मूलत: कश्मीर के थे। कश्मीर का 'अनंतनाग' इलाका इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है। नाग वंशावलियों में 'शेष नाग' को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही 'अनंत' नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला। वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से 'तक्षक' कुल चलाया था। उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।
 
शहर और गांव : नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया था। इसी कारण भारत के कई शहर और गांव 'नाग' शब्द पर आधारित हैं। मान्यता है कि महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां की नदी का नाम नाग नदी भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा। नागपुर के पास ही प्राचीन नागरधन नामक एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक नगर है। महार जाति के आधार पर ही महाराष्ट्र से महाराष्ट्र हो गया। महार जाति भी नागवंशियों की ही एक जाति थी। इसके अलावा हिंदीभाषी राज्यों में 'नागदाह' नामक कई शहर और गांव मिल जाएंगे। उक्त स्थान से भी नागों के संबंध में कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। नगा या नागालैंड को क्यों नहीं नागों या नागवंशियों की भूमि माना जा सकता है।
 
 नाग से संबंधित कई बातें आज भारतीय संस्कृति, धर्म और परम्परा का हिस्सा बन गई हैं, जैसे नाग देवता, नागलोक, नागराजा-नागरानी, नाग मंदिर, नागवंश, नाग कथा, नाग पूजा, नागोत्सव, नाग नृत्य-नाटय, नाग मंत्र, नाग व्रत और अब नाग कॉमिक्स।
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