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नई दिल्ली: पूरा हिन्दुस्तान आजादी का जश्न मना रहा है. क्या बच्चे क्या बजुर्ग सभी स्वतंत्रता दिवस के रंग में रंगे हुए हैं. पूरा देश राष्ट्रभक्ति में ओत-प्रोत है. हालांकि नई जेनरेशन के लोग देश की आजादी से जुड़ी कई बातों से अनजान हैं. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आपको उन 5 नारों के इतिहास के बारे में बता रहे हैं जो जिनके प्रभाव को कभी नहीं भूलाया जा सकता है. ये ऐसे नारे हैं जिसके बूते पूरे देश को जोड़ा जा चुका है.
::/introtext::राष्ट्रगीत: हमारा राष्ट्रगीत वंदे मातरम है. यह गीत प्रसिद्ध लेखक बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास 'आनंदमठ' से लिया गया है. बंकिम चंद्र ने यह गीत 1875 में लिखा जो बांग्ला और संस्कृत में था.
राष्ट्रगान: हमारा राष्ट्रगान 'जन गण मन' है. नोबेल विजेता रबिंद्रनाथ टैगोर के इस गीत को 27 दिसंबर 1911 को कांग्रेस के कोलकाता सत्र में पहली बार गाए जाने के बाद, जन गण मन ने आज भी भारत की जनता और राजनीतिक कल्पना पर अपनी पकड़ बना रखी है. 'जन गण मन' को 52 सेकेंड में गाया जाता है.
जय हिन्द: यह एक ऐसा नारा है जो आजादी की लड़ाई के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा काफी प्रयोग किया जाता था. माना जाता है कि यह नारा सबसे पहले सुभाष चंद्र बोस ने दिया था. हालांकि इसपर विवाद भी है. हैदराबाद की महान शख्सियतों और लघुकथाओं पर आधारित एक किताब के अनुसार यह नारा सबसे पहले नेताजी के सचिव और दुभाषिए ने दिया था, जो हैदराबाद के रहने वाले थे और जिन्होंने नेताजी के साथ काम करने के लिए जर्मनी में अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी थी. अपनी किताब 'लींजेंडोट्स ऑफ हैदराबाद' में पूर्व नौकरशाह नरेंद्र लूथर ने कई दिलचस्प लेख लिखे हैं, जो अपने रूमानी मूल और मिश्रित संस्कृति के लिए प्रसिद्ध इस शहर से जुड़े दस्तावेजी साक्ष्यों, साक्षात्कारों और निजी अनुभवों पर आधारित है. इनमें से एक दिलचस्प कहानी 'जय हिंद' नारे की उत्पत्ति से जुड़ी है. लेखक के अनुसार यह नारा हैदराबाद के एक कलेक्टर के बेटे जैनुल अबिदीन हसन ने दिया था, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए जर्मनी गए थे.
'सारे जहां से अच्छा...': यह एक जनगीत है. अल्लामा इकबाल का लिखा गीत 'सारे जहां से अच्छा...' सौ साल से भी ज्यादा पुराना है, लेकिन यह आज भी लोगों की जुबान पर बसा हुआ है. एक स्कूली बच्चे से लेकर एक फौजी तक सभी को अपने देश की विशेषता बताने के लिए आज भी 21 अप्रैल 1904 को पहली बार गाया गया यह गीत याद आता है.
करो या मरो: हमारे देश की आजादी में 'करो या मरो' एक ऐसा नारा है जिसने पूरे देश को एक कर दिया था. इस नारे के साथ हिन्दुस्तानियों ने अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. यह नारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दिया था. द्वितीय विश्व युद्ध में इंग्लैंड बुरी तरह उलझा था. यह भारतीय नेताओं ने इसे आजादी का आंदोलन छेड़ने का सही समय था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज को 'दिल्ली चलो' का नारा दिया तो महात्मा गांधी ने भी 8 अगस्त 1942 की रात बंबई से 'भारत छोड़ो आंदोलन' का ऐलान किया. उन्होंने लोगों से 'करो या मरो' की मांग की. 'करो या मरो' का नारा इतना प्रभावी हुआ कि पूरे देश ने अंग्रेजों को खदेड़ कर ही दम लिया.
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