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31 जून की सुबह दिल्ली के एक परिवार के सभी 11 सदस्यों की एकसाथ खुदकुशी करने की खबर ने सबको दहला दिया था!

आपको बता दें कि नई जिंदगी की आस में 30 जून की रात दिल्ली के बुराड़ी में रहने वाली
ललित भाटिया के परिवार के सभी 11 सदस्यों ने खुदकुशी कर ली थी। 10 लोगों के शव घर में रॉड से लगे फांसी के फंदे पर लटकते मिले, जबकि ललित भाटिया की मां का शव कमरे में चारपाई पर पड़ा था।
क्या है बुराड़ी परिवार के पुनर्जन्म का सच..
वायरल तस्वीर को जब हमने गूगल इमेज के जरिये ढ़ूँढा तो हमें 2012 की कई न्यूज रिपोर्ट मिलीं, जिसमें यही तस्वीर लगी थी! इसका मतलब साफ है कि यह तस्वीर अभी की नहीं है। इसके साथ ही बुराड़ी परिवार के पुनर्जन्म लेने की बात तो यहीं खारिज हो जाती है। अब जानते हैं क्या सच में किसी महिला ने एक साथ 11 बच्चों को जन्म दिया था? 2012 में भी इस तस्वीर के साथ यही अफवाह उड़ी थी कि एक महिला ने सूरत में एक साथ 11 बच्चों को जन्म दिया था। लेकिन उसी वक्त इस खबर की सच्चाई सामने आ गई थी। वायरल तस्वीर में डॉक्टर्स के पीछे एक पोस्टर दिख रहा है, जिसमें टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर सूरत लिखा हुआ है। इस फोटो में 21st सेंचुरी हॉस्पिटल का नाम भी देखा जा सकता है।
21st सेंचुरी हॉस्पिटल ने उस वक्त ही इस तस्वीर पर किए जा रहे दावे को नकारते हुए बताया था कि यह तस्वीर 11 नवंबर 2011 की है। 11.11.11 जैसे खास दिन को 9 महिलाओं ने डिलिवरी की इच्छा जताई थी। 11 नवंबर 2011 को सूरत में टेस्ट ट्यूब तकनीक से 11 बच्चों ने जन्म लिया था। 9 महिलाओं में से 7 ने एक-एक बच्चे को जन्म दिया और 2 महिलाओं ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था। वायरल तस्वीर में दिख रही गर्भवती महिला की पहचान अमेरिकी नड्या सुलेमान के तौर पर हुई, जिन्होंने 2009 में एक साथ 8 बच्चों को जन्मा था, जिसके बाद वह ऑक्टोमॉम के नाम से मशहूर हो गई थीं। 21st सेंचुरी हॉस्पिटल ने भी माना कि किसी ने उनकी तस्वीर के साथ फोटोशॉप करके इस गर्भवती महिला की तस्वीर जोड़ दी।
हमारी पड़ताल में बुराड़ी के भाटिया परिवार के पुनर्जन्म का दावा करने वाली यह तस्वीर झूठी साबित हुई।


दिल्ली के जीबी रोड (G B Road) के अंदर का नज़ारा
जी.बी रोड (GB Road) का पूरा नाम गारस्टिन बास्टियन रोड (Garstin Bastion Road) है, जहां 100 साल पुरानी इमारतें हैं. जगह-जगह दलालों के झांसे में नहीं आने और जेबकतरों और गुंडों से सावधान रहने की चेतावनी लिखी हुई है. यह दिल्ली (Delhi) की एक सड़क है, जिसका नाम सुनते ही लोगों की भौंहें तन जाती हैं और वे दबी जुबान में फुसफुसाना शुरू कर देते हैं.
स्कूल में जब मैंने पहली बार इसके बारे में सुना था, तो कौतूहल था कि आखिर कैसी होगी यह सड़क? फिल्मों में अक्सर देखे गए कोठे याद आने लगते थे. याद आती थी मर्दो को लुभाने वाली सेक्स वर्कर्स, जिस्म की मंडी चलाने वाली कोठे की मालकिन और न जाने क्या-क्या. यही कौतूहल इतने सालों बाद मुझे जी.बी. रोड (GB Road) खींच लाया.
बीते रविवार सुबह आठ बजे जब मैं जी.बी.रोड (GB Road) पहुंची, तो यह सड़क दिल्ली की अन्य सड़कों की तरह आम ही लगी. सड़क के दोनों ओर दुकानों के शटर लगे हुए थे. इन दुकानों के बीच से ही सीढ़ी ऊपर की ओर जाती हैं और सीढ़ियों की दीवारों पर लिखे नंबर कोठे की पहचान कराते हैं. कुछ लोग सड़कों पर ही चहलकदमी कर रहे हैं और हमें हैरानी भरी नजरों से घूर रहे हैं. हमने तय किया कि कोठा नंबर 60 में चला जाए.
एनजीओ (NGO) में काम करने वाले अपने एक मित्र के साथ फटाफट सीढ़ियां चढ़ते हुए मैं ऊपर पहुंची, चारों तरफ सन्नाटा था. शायद सब सो रहे थे, आवाज दी तो पता चला, सब सो ही रहे हैं कि तभी अचरज भरी नजरों से हमें घूरता एक शख्स बाहर निकला. बड़े मान-मनौव्वल के बाद बताने को तैयार हुआ कि वह राजू (बदला हुआ नाम) है, जो बीते नौ सालों से यहां रह रहा है और लड़कियों (Sex Worker) का रेट तय करता है.

पहचान उजागर न करने की शर्त के साथ राजू ने एक सेक्स वर्कर सुष्मिता (बदला हुआ नाम) से हमारी मुलाकात कराई, जिसे जगाकर उठाया गया था. मैं सुष्मिता से अकेले में बात करना चाहती थी, लेकिन राजू को शायद डर था कि कहीं वह कुछ ऐसा बता न दे, जो उसे बताने से मना किया गया है.
सुष्मिता की उम्र 23 साल है और उसे तीन साल पहले नौकरी का झांसा देकर पश्चिम बंगाल से दिल्ली लाकर यहां बेच दिया गया था. सुष्मिता ठीक से हिंदी नहीं बोल पाती, वह कहती है, "मैं पश्चिम बंगाल से हूं, मेरा परिवार बहुत गरीब है. एक पड़ोसी का हमारे घर आना-जाना था. उसने कहा, दिल्ली चलो. वहां बहुत नौकरियां हैं तो उसके साथ दिल्ली आ गई. एक दिन तो मुझे किसी कमरे में रखा और अगले दिन यहां ले आया."
यह पूछने पर कि क्या वह अपने घर लौटना नहीं चाहती है? काफी देर चुप रहकर वह कहती है, "नहीं. घर नहीं जा सकती. बहुत मजबूरियां हैं. यहां खाने को मिलता है, कुछ पैसे भी मिल जाते हैं, जो छिपाकर रखने पड़ते हैं." सुष्मिता बीच में ही कहती है, "किसी को बताना मत..." इससे आगे कुछ पूछने की हिम्मत ही नहीं हुई. सुष्मिता है तो 23 की, लेकिन उसका शरीर देखकर लगता है कि जैसे 15 या 16 की होगी, दुबली-पतली कुपोषित लगती है. इमारत की पहली और दूसरी मंजिल पर जिस्मफरोशी का धंधा चलता है. इच्छा हुई कि इन कमरों के अंदर देखा जाए कि यहां कैसे रहते हैं? अंदर घुसी कि एक अजीब सी गंध ने नाक ढकने को मजबूर कर दिया. इतने छोटे और नमीयुक्त कमरे हैं, सोचती रही कि कोई यहां कैसे रह सकता है.

राजू बताता है कि एक कोठे में 13 से 14 सेक्स वर्कर हैं और सभी अपनी मर्जी से धंधा करती हैं लेकिन गीता (बदला हुआ नाम) की बात सुनकर लगा कि ये मर्जी में नहीं मजबूरी में धंधा करती हैं. गीता कहती है, "जैसे आप नौकरी करके पैसे कमाती हो. वैसे ही ये हमारी नौकरी है. आप बताइए, हमारी क्या समाज में इज्जत है, कौन हमें नौकरी देगा. जिस्म बेचकर ही हम अपना घर चला रहे हैं. बेटी को पढ़ा रही हूं, ये छोड़ दूंगी तो बेटी का क्या होगा."
गीता कहती है कि वो एक साल में तीन कोठे बदल चुकी है. वजह पूछने पर कहती है, "पैसे अच्छे नहीं मिलेंगे तो कोठा तो बदलना पड़ेगा ना." गीता की ही दोस्त रेशमा (बदला हुआ नाम) कहती है, "हम जैसे हैं, खुश हैं. सरकार हमारे लिए क्या कर रही है. हमारे पास ना राशन कार्ड है, ना वोटर कार्ड ना आधार. हमारे पास कोई वोट मांगने भी नहीं आता. सरकार ने हमारे लिए क्या किया. कुछ नहीं."
जेहन में ढेरों सवाल लेकर एक और कोठे पर गई, जहां 15 से लेकर 19 साल की कई सेक्स वर्कर मिली, जो शायद रातभर की थकान के बाद देर सुबह तक सो रही हैं. इसके बारे में राजू कहते हैं, "रात आठ बजे के बाद यहां का माहौल बदल जाता है. कोठे पर आने वालों की संख्या बढ़नी शुरू हो जाती है. अकेले आने वाले शख्स को जेबकतरे लूट लेते हैं, चाकूबाजी की भी कई वारदातें हुई हैं." यहां आकर लगता है कि एक शहर के अंदर कोई और शहर है. जिस्मफरोशी के लिए यहां लाई गई या यहां खुद अपनी मर्जी से पहुंचीं औरतों की जिंदगी दोजख से कम कतई नहीं है. अपने साथ कई सवालों के जवाब लिए बिना वापस जा रही हूं, इस उम्मीद में कि जल्द लौटकर जवाब बटोर लूंगी.
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