Saturday, 06 December 2025

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इंटरनेशनल जोक्स डे मनाने का मुख्य उद्देश्य हंसना और हंसाना है। आप भी अपने आसपास के लोगों को हंसने पर मजबूर कीजिए।.....

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इंटरनेशनल जोक्स डे मनाने का मुख्य उद्देश्य हंसना और हंसाना है। आप भी इस दिन जोक्स के जरिए अपने आसपास के लोगों को हंसने पर मजबूर कीजिए। दुनिया भले ही अलग-अलग धर्म और संस्कृति में बंटती हो, लेकिन एक बात दुनियाभर के हर इंसान को एक-दूसरे से जोड़ती है, वह है हास्य-व्यंग्य। हंसी-खुशी, मस्ती-मजाक ऐसे भाव हैं जिनका संचार इंसान को इंसान से जोड़ता है।
 
आप चाहें जिस भी धर्म या जाति के हों, जोक्स के प्रति आपकी प्रतिक्रियाएं एक जैसी ही होती हैं। हर व्यक्ति अपने जीवन में खुशी चाहता है। आजकल की तनावभरी जिंदगी में जोक्स हमारे तनाव को कम कर हमें खुश रखने में बेहद खास भूमिका निभाता है। जिस प्रकार रोटी, कपड़ा और मकान इंसान के लिए बेहद जरूरी हैं, उसी प्रकार खुशी या हास्य भी जीवन के विकास के लिए बेहद आवश्यक हैं।
 
इसीलिए इसके कई फायदों और महत्ता को देखते हुए पूरी दुनिया में को 'इंटरनेशनल जोक्स डे' मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य हर चेहरे पर मुस्कान लाना और हास्य से पूरी दुनिया को जोड़ते हुए उसे प्रसारि‍त करना है।
 
कैसे मनाएं यह दिन-  इंटरनेशनल जोक्स डे मनाने का मुख्य उद्देश्य हंसना और हंसाना है। आप भी इस दिन जोक्स के जरिए अपने आसपास के लोगों को हंसने पर मजबूर कीजिए। टीवी, रेडियो, जोक्स, कॉमेडी फिल्म के माध्यम से इस दिन को आप मना सकते हैं। बाजार में भी जोक्स की कई किताबें मि‍ल सकती हैं और इंटरनेट तो है ही, जहां आपके लिए जोक्स और फनी चीजों का भंडार उपलब्ध है।
 
* इस दिन आप अपने सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को मजेदार जोक्स भेजकर या मेल करके खुशी दे सकते हैं।
 
* घर में बैठकर सभी के साथ कॉमेडी फिल्म या शो देख सकते हैं।
 
* छोटी-मोटी गेट-टुगेदर कर जोक्स सुनाकर सबके साथ मस्ती-मजाकभरे पलों को बिता सकते हैं।
 
* किसी वृद्धाश्रम में जाकर इस दिन सभी को जोक्स सुनाकर या कॉमेडी शो दिखाकर खुशियां बांट सकते हैं। 
* कुछ मजेदार गेम्स या टास्क ऑर्गेनाइज कर सकते हैं जिसमें सोसायटी को शामिल किया जा सकता है।
 
* आप अगर चाहें तो किसी स्कूल या अनाथ आश्रम में जाकर बच्चों के बीच इस दिन को मना सकते हैं, क्योंकि बच्चे ही सबसे ज्यादा जोक्स को एंजॉय करते हैं।
 
यह दिन आपके लिए एक बेहतर अवसर है, अपने आसपास की दुनिया में खुशी बिखेरने का...! इसे जाने मत दीजिए। जितना हो सके, इस दिन को सेलीब्रेट कीजिए, एक दिन ही सही, लेकिन खुद को खुश रखने और तनाव से दूर भागने का अच्छा बहाना साबित हो सकता है यह दिन।
 
उद्भव- हास्य के लिए जोक्स की भूमिका को देखते हुए 'इंटरनेशनल जोक्स डे' को सबसे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में मनाया गया था। वैसे तो जोक्स के इतिहास के बारे में कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि सर्वप्रथम जोक्स का आविष्कार यूनान में हुआ था। आज भी ग्रीस में बने श्रेष्ठतम कॉमेडी क्लब वहां का गौरव हैं, जो भारत के साथ ही अन्य देशों में भी स्टैंड-अप कॉमेडी क्लब के नाम से जाने जाते हैं।
 
हास्य का
महत्व- 
जोक्स, हास्य का वह माध्यम है, जो एक ही समय में एक साथ हजारों-करोड़ों लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाने के साथ ही उन्हें ठ‍हाका लगाने पर मजबूर कर सकता है। यह सकारात्मक ऊर्जा का सशक्त माध्यम है। शायद इसीलिए जब भी आप हंस रहे होते हैं या ठहाका लगा रहे होते हैं, तब आपको कुछ भी याद नहीं रहता सिवाय हास्य के। जब आप हंसते हैं तो आपके दिमाग की सारी नकारात्मक बातें गुम-सी हो जाती हैं और आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
 
हंसने और हंसाने के फायदे- हास्य के जीवन में अपने फायदे हैं फिर चाहे वह मानसिक तनाव को दूर करने के लिए हो या खुश रहने के साथ शारीरिक स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए हो। हास्य को 'बेस्ट मेडि‍सिन' कहा गया है। इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाकर आधी बीमारियों को बिना दवा के भी ठीक किया जा सकता है। समाज में प्रसार के लिए जोक्स की अहम भूमिका है। जोक्स या किसी भी हास्य को देखना या सुनना दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर को वे सिग्नल्स देता है, जो हमें अच्छा या बेहतर महसूस कराते हैं।
 
एक छोटी-सी मुस्कान भी किसी भी तकलीफ या परेशानी के दर्द को कम कर देती है। यही कारण है कि विश्व के अनेक देशों में अस्पतालों में भी छोटे-छोटे लॉफिंग क्लब या सेशंस शुरू कर दिए गए हैं। इनके जरिए मरीजों का तनाव कम होता है और वे खुश रहते हैं जिससे उनके जल्दी ठीक होने की उम्मीद बढ़ जाती है।
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 लंबे समय के इंतजार के बाद अखिरकार 36 इंच के दूल्हे को उसकी जीवन की हमसफर मिल गई.....

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गोरखपुर। एक लंबे समय के इंतजार के बाद अखिरकार 36 इंच के दूल्हे को उसकी जीवन की हमसफर मिल गई। उत्तर प्रदेश के में गत सोमवार को हुई अनोखी शादी पूरे शहर में चर्चा का विषय रही। शादी के बाद 36 इंच का दूल्हा एवं 34 इंच की एक-दूसरे के हमसफर बने। शादी में आने वाले लोगों में दूल्‍हा-दुल्‍हन के साथ सेल्‍फी खिंचवाने का जुनून भी खूब दिखाई दिया। इस अनोखी शादी में कई ऐसे लोग भी पहुंचे थे, जिनको न तो वर पक्ष से न्‍योता मिला था और न ही वधू पक्ष से लेकिन, सभी के चेहरे पर खुशी साफ झलकती दिखाई दी।
 
गोरखपुर जिले में खजनी क्षेत्र के विशुनपुरा गांव निवासी 42 वर्षीय डॉ. सुनील पाठक जो 36 इंच के हैं और संस्कृत से पीएचडी किए हुए हैं। वह छह भाइयों में तीसरे नंबर के हैं। सभी की शादियां हो चुकी हैं। शिक्षा प्राप्त करने के दौरान भी सहपाठियों द्वारा उन्हें कद छोटा होने पर उपहास का विषय बनाया जाता था। सुनील ने अपने छोटे कद की वजह से धीरे-धीरे शादी की उम्मीद छोड़ दी थी। फिर अचानक एक दिन उसके लिए रानीबाग के प्रज्ञा कालोनी निवासी सारिका मिश्रा (32) का रिश्ता आया जो लगभग उसी के जैसी थी। सुनील ने झट से शादी के लिए हां कर दी। उसने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की है।
 
बेटी सारिका की उम्र बढ़ने के साथ ही उसके विवाह की चिंता भी घरवालों को सताने लगी थी। डॉ. पाठक का रिश्ता सारिका के लिए वरदान सरीखा रहा। दोनों को एक साथ देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं।बढ़ती उम्र के चलते डॉ. सुनील ने शादी की उम्‍मीद खो दी थी, लेकिन आखिरकार उसे अपने सपनों की रानी मिल ही गई। दोनों की शादी गत सोमवार को धूमधाम से हुई। दोनों एक-दूसरे के हो गए। इस मौके पर जुटे परिवारीजन और परिचितों ने वर-वधू को आशीर्वाद देकर उनके सुखद वैवाहिक जीवन की मंगल कामना की।
 
वहीं शादी में ऐसे लोग भी जुटे जिन्हें बुलाया नहीं गया था, लेकिन विवाहित जोड़े के साथ सेल्फी लेने वालों की भीड़ जुट गई थी। दुल्हन बनी सारिका इस शादी से काफी खुश है। वहीं शादी से खुश उसके भाई प्रवीण कुमार मिश्र का कहना था कि उन्होंने बहन सारिका के शादी की उम्मीद ही छोड़ चुके थे।
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पीपल के पेड़ के चारों तरफ उल्टी दिशा में धागा बांधकर मन्नत मांगी, ऐसी पत्नियां सात जन्म तो क्या सात सेकंड के लिए भी नहीं चाहिए.....

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Maharashtra, Aurangabad: महाराष्ट्र की महिलाओं ने वट पूर्णिमा पर जहां अपने पतियों की लंबी आयु के लिए दुआ मांगी वहीं पुरुषों के एक समूह ने पत्नियों से ‘‘छुटकारा ’’ की दुआएं मांगीं.

महाराष्ट्र की महिलाओं ने वट पूर्णिमा पर जहां अपने पतियों की लंबी आयु के लिए दुआ मांगी वहीं पुरुषों के एक समूह ने पत्नियों से ‘‘छुटकारा ’’ की दुआएं मांगीं. बताया जाता है कि ये पुरुष अपनी पत्नियों से पीड़ित हैं. वट सावित्री पूजा के अवसर पर कुछ पुरुषों ने पीपल के पेड़ के चारों तरफ उल्टी दिशा में धागा बांधकर मन्नत मांगी की कि ऐसी पत्नियां सात जन्म तो क्या सात सेकंड के लिए भी नहीं चाहिए.

 वट पूर्णिमा को वट सावित्री के नाम से भी जाना जाता है. यह एक ऐसा पर्व है जहां शादीशुदा महिलाएं बरगद के पेड़ के चारों तरफ धागा बांधकर अगले सात जन्मों तक अपने पति का साथ मांगती हैं. इस दिन हिंदू महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती हैं. यह पर्व सावित्री और सत्यवान की कथा पर आधारित है जहां सावित्री ने मृत्यु देवता यम से अपने पति सत्यवान का जीवन ‘‘वापस हासिल’’ कर लिया था.

पत्नी पीड़ित पुरुष संगठन के सदस्यों ने वालुज इलाके में इस पर्व को आज दूसरे तरीके से मनाया. ये पुरुष अपनी पत्नियों से पीड़ित होने का दावा करते हैं. उन्होंने पीपल के पेड़ पर उल्टी दिशा में धागा बांधकर जाप किया, ‘‘अगले सात जन्मों तक ऐसी पत्नी मत देना.’’ संगठन के सदस्य तुषार वाखरे ने कहा, ‘‘हमारी पत्नियां कानूनी प्रावधानाओं का इस्तेमाल कर हमारा उत्पीड़न करती हैं.उन्होंने हमें इतनी दिक्कतें दी हैं कि हम उनके साथ सात सेकंड भी नहीं रहना चाहते, सात जन्म की बात ही छोड़ दीजिए.’’

संगठन के संस्थापक भरत फुलवारे और अन्य सदस्यों ने भादंसं की धारा 498-ए, 354 और घरेलू हिंसा कानून के ‘‘दुरुपयोग’’ को लेकर बैनर दिखाए. एक अन्य सदस्य ने कहा कि उनकी पत्नी ने उनके खिलाफ पुलिस में मामले दर्ज कराए जिस पर उन्हें चार लाख रुपये से ज्यादा खर्च करने पड़े. एक और सदस्य ने कहा कि उन्हें ऐसी पत्नी नहीं चाहिए क्योंकि वह अपना खाना खुद बनाते हैं और सारे घरेलू काम करते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘उसके कारण मेरी नौकरी चली गई. उसका चेहरा देखने के बजाए मैं मरना पसंद करूंगा.’’

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रोज अचार खाने की आदत का आप पर होगा कैसा असर...

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Highlights
  • भारतीय रसोई में अचार का अपना ही महत्व है
  • अक्सर जब आप रोज-रोज अचार खाते हैं
  • आपको बताते हैं कि रोज अचार खाना कितना सही है और कितना गलत..

भारतीय रसोई में अचार का अपना ही महत्व है. मौसम बदलते ही यहां रसोई में बदल-बदल कर अचार तैयार किए जाते हैं. हर सीजन की चीजों के अनुसार ही रसोई भी उस मौसम में मिलने वाली चीजों की खुशबू से महक उठती है और इस खुशबू और स्वाद को लंबे समय तक अपने पास बनाए रखने की चाह ही इन्हें बदल देती है अचार के रूप में... 

भारतीय रसोईयों में आम, नींबू, गाजर, लहसुन, शलगम, गोभी और भी जाने कितनी तरह के अचार मौजूद होते हैं. लेकिन अक्सर जब आप रोज-रोज अचार खाते हैं तो मां या कोई बड़ा आपका हाथ रोक लेता है ये कहते हुए कि रोज-रोज अचार खाना ठीक नहीं.. आज हम आपको बताते हैं कि रोज अचार खाना कितना सही है और कितना गलत... 

aam ka achaar or mango pickle

पहले नजर ड़ालते हैं इससे मिलने वाले फायदों पर- 

- अचार पाचन को दुरुस्‍त करता है. लेकिन यह अच्छा तब साबित होगा जब यह घर पर बना हुआ हो. 

- घर पर अचार बनाने की प्रक्रिया में इसे नमक डालकर उसे गलाया जाता है. इससे अचार में प्रोबायोटिक बैक्‍टीरिया बनते हैं, जो पाचन के लिए काफी अच्छे होते हैं... 

- अचार वास्तव में मौसमी सब्जियों या कच्चे फलों को संरक्षित करने की प्रक्रिया है. यही वजह है कि इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट्स होते हैं. ये कई तरह की एलर्जी से आपको बचा सकता है.

- घर पर बनाए जाने वाले अचार के डिब्‍बों को धूप दिखाई जाती है. जिसके चलते इनमें कई विटामिन और मिनरल होते हैं.

- अचार को ज्यादा दिनों तक ठीक रखने के लिए इसमें सिरके का इस्तेमाल किया जाता है. सिरके में काफी मात्रा में एसिटिक एसिड होता है जो हीमोग्‍लोबिन बढ़ाता है. 

- अचार में विटामिन K के भरपूर होता है. जो ब्लड क्लॉटिंग में मददगार है. यह चोट लगने पर उस घाव को भरने और खून के बहाव को रोकने में मददगार है.

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हो सकते हैं नुकसान भी...
- क्योंकि अचार में काफी मात्रा में सोडियम होता है यह कई तरह की समस्याएं पैदा कर सकता है. यह हाइपरटेंशन से परेशान लोगों के लिए ठीक साबित नहीं होता साथ ही ब्‍ल्‍ड प्रेशर के मरीजों के लिए भी अच्‍छा नही है.

- बाजार में मिलने वाले अचार में प्रिजेरवेटिव्‍स होते हैं, जो सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं.

- आचार में बहुत ज्यादा तेल, नमक और सिरके का इस्‍तेमाल होता है. यह सेहत के लिए नुकसानदेय साबित हो सकता है.
कई बार अचार में चीनी का इस्तेमाल भी किया जाता है. यह डायबिटीज के मरीजों के लिए ठीक नहीं.

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