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महिलाओं के बारें में ये कहना कि वो कुछ कर नहीं सकतीं या वो कुछ बड़ा अचीव नहीं कर सकती तो ये एक मिथ है। आज के वक्त में देखा जाए तो दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों से लेकर देशों को संभालने का काम महिलाएं बखूबी निभा रही हैं और उसमें अपना बेस्ट दे रही हैं जो शायद पुरुष भी नहीं कर सकते हैं। आज की महिला जितनी सॉफ्ट है उतनी ही मजबूत भी है। महिलाएं आज को सारे काम कर रही हैं जिनके बारें में कहा जाता था कि ये काम औरतों का नहीं है वो कमजोर है, लेकिन महिलाओं ने अपनी हिम्मत, शॉर्प ब्रेन और मेहनत के दम पर सब को झूठा साबित करके ये दिखाया है वो पुरूषों के बराबर नहीं बल्कि उनसे आगे हैं। अपने देश भारत की महिलाओं की बात करें तो एक सफल हाउस वाइफ से लेकर प्रशासनिक अधिकारी, बेस्ट स्पोर्ट्स पर्सन, बिजनेस वुमन तक की फील्ड में सफलता के झंडे गाड़ रही हैं। हमारी ये स्टोरी ऐसी ही कुछ महिलाओं के बारें में हैं, इनकी उपलब्धी की कहानी लिखी जाए तो शब्द कम पड़ने लगते हैं। इन्होंने अपनी हिम्मत और काबलियत के दम पर अपने सिर पर कामयाबी का ताज पहना है। जो लोग बहुत ज्यादा काम या बड़ा काम देखकर घबरा जाते हैं, ये वहीं काम अपने दम पर पूरा करती हैं। क्योंकि सफलता कभी छोटी नहीं होती है और जब तक प्रयास नहीं करेंगे तब तक आप मंजिल नहीं पा सकते, लेकिन इन महिलाओं ने ये करके दिखाया हैं। कहते हैं ना, ''गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले''। तो इन महिलाओं ने इस बात को प्रूफ कर दिया है कि वो दुनिया को बदल सकती है, कुछ नया कर सकती हैं-
तहसीन महाराष्ट्र के पुणे शहर में सोशल वर्कर हैं, साथ ही एक बेहतरीन इंसान भी हैं। इनको अपने काम के दम पर अब तक तीन स्टेट लेवल पुरस्कार मिल चुके हैं। इन्होंने डिग्री तो पत्रकारिता की ली, साथ ही कई बड़े समाचार चैनलों में भी काम किया, लेकिन इनका मन उसमें नहीं रमा। इन्होंने अपनी नौकरी को छोड़ा और सामाजिक कार्यकर्ता बन गईं। तहसीन ने कोरोना काल में, जब लोग अपने घरों के अंदर थे, बाहर निकल कर गरीब, असहाय लोगों की मदद की। जिनके पास खाना नहीं था उनको खाना प्रोवाइड करवाने का काम किया, कपड़ों से लेकर कोरोना में पीड़ित लोगों को अस्पताल पहुंचवाने का काम इन्होंने किया। तेहसीन के इनीशिएटिव पर डॉन बॉस्को संस्था, जिसमें ये प्रोजेक्ट मॅनेजर के तौर पर काम करती हैं, एक फ्री मॉल कॉन्सेप्ट स्टार्ट किया। जहां पर लोग फ्री में आकर सामान ले जाते हैं, जिसमें कपड़ो से लेकर जूते-चप्पल, डेली यूज का सामान भी प्रोवाइड करवाया जाता है। कोरोना की वजह से जिन बच्चों का स्कूल छूट गया उनको दोबारा स्कूल में इन-रोल करवाने का काम तहसीन ने किया। तहसीन अभी वृद्ध महिलाओं के साथ सोशल मीडिया पर एक कैंपेन कर रही हैं। खुद कोरोना से पीड़ित होने के बाद भी इन्होंने अपना काम जारी रखा था। इस विमेंस डे पर हमारी तरफ से तहसीन के ज़ज्बे को सलाम।
बनारस की रहने वाली हाउस वाइफ से इंटरप्रेन्योर बनीं कविता उपाध्याय की कहानी काफी इंस्पिरेशनल है। कविता पिछले 10 सालों से बनारस में हाइपर लोकल डिजिटल न्यूज मीडिया हाउस का सफल संचालन कर रही हैं। साल 2013 में कविता ने डिजिटल इंडिया की ताकत जाना और वाराणसी के लोगों के लिए डिजिटल न्यूज वेंचर की शुरूआत की। मैनेजिंग डायरेक्टर कविता के साथ इस वक्त 15 लोगों की टीम काम करती है। 2020 के लॉकडाउन में जब लोग घरों में कैद थे, तब इनके मीडिया चैनल ने बनारस की पल-पल की खबरों को लोगों से रूबरू करवाया। कविता अपनी दूसरी जिम्मेदारी भी बखूबी निभाती हैं। संयुक्त परिवार में रह रहीं कविता एक बहु के तौर पर भी अपने सारे फर्ज पूरा करती हैं।
बिंदु चावला के बारें में कहने के लिए शायद ये पेज छोटा पड़ जाए, क्योंकि इन्होंने जो काम किया है, वो शायद आज के वक्त के बेटे भी नहीं करते, जो एक बेटी के तौर पर इन्होंने किया है। बिंदु एक प्रोडक्शन कंपनी की हेड हैं, लेकिन इसके साथ ही वो अपने पेरेंट्स के लिए किसी बेटे से कम नहीं है। जब उनका करियर पीक पर था तब उन्होंने अपने बूढ़े माता-पिता के लिए नौकरी छोड़ दी और उनकी सेवा में लग गईं। अपने पेरेंट्स की सेवा करने के लिए बिंदु ने शादी तक नहीं की, क्योंकि उनको लगता था कि जिस तरह से वो अभी अपने माता-पिता का ख्याल रखती हैं वैसा शायद शादी के बाद मुमकिन नहीं होगा। पिता का पिछले साल देहान्त होने के बाद बिंदु अपनी मां जो पैरालिसिस की शिकार हैं, उनकी सेवा में दिन रात लगी रहती हैं। जहां आज के वक्त में बेटे अपने माता-पिता को घर से निकाल देते हैं, ओल्ड एज होम भेज देते हैं, ऐसे वक्त में एक प्रोडक्शन कंपनी की मालकिन बिंदु का अपने पैरेंट्स के लिए ये ज़ज्बा काबिले तारीफ है।
सऊदी अरब देश जहां पर लड़कियों के लिए काफी सख्त रूल्स है, में पैदा हुई आयशा ने बचपन से ही बाग़ी तेवर दिखाने शुरू कर दिये थे। जहां लड़कियां घर में बैठ कर इधर-उधर की बातों में मशगूल रहती थीं तब छोटी आयशा बाहर निकल कर साइकिल चलाती थीं। आयशा जब बड़ी हुईं तब इनका शौक बाइक चलाने में तब्दील हो गया। 2010 में आयशा की फैमली जेद्दाह से इंडिया वापस आई तो इन्हें लखनऊ में उड़ने का पूरा आसमान मिल गया। उनको यहां पर हर वो काम की आजादी मिली जो वो अरब में रह कर नहीं कर पा रही थीं। यहां से उनका बाइक चलाने का सफर शुरू होता है और जल्द ही उनकी पहचान बुर्का राइडर के तौर पर होने लग गई। आयशा अब तक लखनऊ से नैनिताल, दिल्ली से जयपुर, दिल्ली से लद्दाख का सफर तय कर चुकी हैं। खास बात ये है कि आयशा अपना हिजाब नहीं उतारती हैं, वो कहती हैं ये मेरी पहचान है। अब तक उनकी झोली में कई सारें अचीवमेंट और ईनाम आ चुके हैं।
सानिया मुनव्वर ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। इन्होंने देश का नाम दुनिया में रोशन करते हुए संयुक्त राष्ट्र युवा सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। सानिया को विश्व वन्यजीव कोष (WWF) को भारतीय राजदूत के रूप में भी चुना गया। ब्रिटेन के हर्टफोर्डशायर विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान सानिया ने UK में लेबर पार्टी जॉइन कर ली। बरो के लेबर पार्टी यूथ ऑफिसर के रूप में चुनी गईं। पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए टाउन काउंसलर चुनाव के लिए भी खड़ी हुईं और उपविजेता रहीं, जो लखनऊ शहर की लड़की के लिए बड़ा अचीवमेंट है। सानिया ने लगातार 2 सालों तक प्रतिष्ठित डीन का पुरस्कार भी जीता है।
हरियाणा के झज्जर की रहने वाली दृष्टि अभी अपने 10th बोर्ड का एग्जाम दे रही हैं। लेकिन इनके अचीवमेंट इनके उम्र से ना आंके। छोटी से उम्र में डिप्रेशन झेल चुकी और खुद को इससे बाहर निकालने में कामयाब होने के बाद दृष्टि ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। दृष्टि एक बाइक राइडर हैं, साथ ही वो पिता के एनजीओ में भी काम करती है। वो अपने पिता के ऑफिस जाकर काम करती हैं और पैसा कमाती हैं। दृष्टि अपने पिता के एक प्रोजेक्ट जो पेड़-पौधों में टैगिंग का काम करता है उसको लीड भी करती हैं। अपनी पढ़ाई करने के बाद वो इन्हीं कामों में लग जाती हैं। इसके साथ ही वो अपने पिता के साथ ही बाइकर ग्रुप का हिस्सा हैं, जो अब तक हजारों मील का सफर बाइक से तय कर चुके हैं। स्कूल में दृष्टि को बच्चों के द्वारा बुली किया जाता था, जिसके बाद वो डिप्रेशन में चली गईं, लेकिन दृष्टि पूरी बहादुरी के साथ अपने अवसाद से लड़ीं और कम उम्र में ही एक सफल बाइक राइडर हैं।
पीरियड्स हर उम्र की लड़की और महिलाओं के लिए काफी मुश्किल होता है। खासकर पेट में होने वाली ऐंठन और प्राइवेट पार्ट्स में बैक्टीरिया के कारण होने वाले संक्रमण से गंभीर स्वास्थ्य संबंधित बीमारियां हो सकता हैं। इतने ही नहीं इस समय रेसिज जैसी समस्या भी हो सकती है। पीरियड्स में जब सफाई की बात आती है तो प्राइवेट पार्ट्स की सफाई बनाए रखना बहुत ज्यादा जरूरी हो जाता है। क्योंकि वे शरीर की प्राकृतिक कार्यप्रणाली को नियंत्रित करने में मदद करता है। ये सभी समस्याएं पीरियड्स में स्वच्छता और जरूरी चीजों के महत्व की ओर इशारा करते हैं, जिन्हें हर महिला को अपनी लाइफस्टाइल में जरूर शामिल करना चाहिए।
1. डिस्पोजेबल टॉयलेट सीट कवर
पीरियड के दौरान UTI जैसे संक्रमण की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसे में आप डिस्पोजल टॉयलेट सीट कवरिंग का उपयोग खुद की सुरक्षा के लिए जरूर करें। ये कवर वाटरप्रूफ होता है जो टॉयलेट सीट की सतह पर संक्रमण फैलने की संभावना को खत्म करता हैं, साथ ही सीट पर खून के धब्बे को भी लगने से बचाता है।
पीरियड्स के दौरान अक्सर प्राइवेट पार्ट में पसीना और नमी होने की समस्या हो जाती है। वैसे तो ये समस्या आम है लेकिन अपने प्राइवेट पार्ट में इंफेक्शन होना या किसी तरह के इंफेक्शन से बचने के लिए ड्राई रखने की जरूरत होती है। ऐसे में आप अपने साथ वेट वाइप्स का उपयोग कर सकते हैं। ये पीरियड्स के दौरान आपको नमी और पसीने को पोंछने में मदद करेगा।
पीरियड के दौरान आपको इंफेक्शन होने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। ऐसे में आपको अपनी ज्यादा केयर करने की जरूरत होती है। लेकिन ऑफिय में या किसी पब्लिक प्लेस में खुद को सुरक्षित रख पाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। पब्लिक टॉयलेट यूज करने से आपको यूरीन इंफेक्शन, प्राइवेट पार्ट में रैसेजी जैसी समस्या बढ़ सकती है। इसलिए पब्लिक टॉयलेट यूज करने से पहले आप टॉयलेट सीट पर सैनिटाइजर जरूर स्प्रे कर लें। आपको टॉयलेट सीट सेनिटाइजर आसानी से मिल जाएगा।
4. पैड
पैंट्री लाइनर यानि पैड पीरियड्स में महिलाओं के लिए एक एक सुरक्षा कवच के रूप में काम करता है। पीरियड फ्लो में आपके कपड़ों पर लगने वाले दाग-धब्बों से आपको बचाने में पैड काफी मददगार होते है। आप इसे अपने ऑफिस बैग में रखकर जरूर कैरी करें। खासकर वर्किंग वुमन या फिर कॉलेज गर्ल। पीरियड एक ऐसी चीज है जो कभी-कभी समय से पहले भी आ जाती है। ऐसे में एमरजेंसी के लिए आप अपने साथ एक पैड जरूर कैरी करके रखें। और समय-समय पर अपने पैड को बदलते रहे।
( डिस्क्लेमर : इस लेख में दी गई सभी जानकारी और सूचनाएं सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं। इन चीजों पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें। )
बच्चों को घर के हेल्दी खाने से ज्यादा बाहर का जंक फूड खाना ज्यादा पसंद होता है। जिस कारण आज के समय में बच्चों की इम्यूनिटी काफी कमजोर हो जाती है जो बच्चों में संक्रमण का कारण बन सकता है। बाहर का खाना बच्चो के हेल्थ के लिए अच्छा नहीं होता है। इस कारण भी बच्चों को पेट में दर्द की समस्या होती है। बच्चे बहुत ज्यादा नादान भी होते हैं। ऐसे में वो बाहर से खेलकर आने के बाद बिना हाथ साफ किए ही खाना खाने लगते हैं। इस वजह से भी बच्चों के पेट में इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। ये इंफेक्शन बच्चों में पेट दर्द के साथ उल्टी, दस्त और बुखार की समस्या भी साथ लाता है। आइए जानते हैं बच्चों को पेट के इंफेक्शन से कैसे बचाया जा सकता है।
* बच्चों का जी मिचलाना लगता है, उन्हे कुछ भी खाने का मन नहीं होता है।
बार-बार उल्टी होना और कुछ भी अच्छा नहीं लगना।
* बुखार आ जाना।
* पेट के साथ हाथ और पैरों में भी बहुत ज्यादा दर्द होना।
पेट में इंफेक्शन होने पर घरेलु इलाज
बच्चे को पेट में इंफेक्शन का इलाज एंटी वायरल दवाओं की मदद से किया जाता है। इसके साथ ही आपको कई अन्य बातों पर भी काफी ध्यान देने की जरूरत होती है। ऐसे में आइए जानते हैं बच्चों के पेट में इंफेक्शन को कम करने के लिए आप किन घरेलू उपायों को अपना सकते हैं।
पेट का इंफेक्शन होने के कारण बच्चों को उल्टी, दस्त जैसी समस्या होने लगती हैं, जो बच्चों में डिहाइड्रेशन की परेशानी को बढ़ा सकता है। इसलिए आप बच्चों को तरह पदार्थ जरूर दें। उनकी डाइट में जूस, सूप और उचित मात्रा में पानी को जरूर शामिल करें।
2. हल्का आहार
पेट इंफेक्शन के समय बच्चों के खान-पान का बहुत ज्यादा ख्याल रखने की जरूरत होती है। ऐसे में आप उनकी डाइट में मूंग दाल की खिचड़ी, दलिया या हल्का भोजन ही शामिल करें।
3. जंक फूड से रखें दूर
स्टमक इंफेक्शन होने पर बच्चों को कुछ भी बाहर का खाने पीने से रोकें। बाहर का फूड उनके हेल्थ के लिए अच्छा नहीं है। खासकर इंफेक्शन होने पर उनके पेट दर्द को बढ़ा सकता है।
आज के समय में लोग शादी से पहले ही फैमिली प्लानिंग कर लेते हैं। जिसमें शादी के कुछ सालों बाद ही बच्चा करने पर विचार किया जाता है। ऐसे में महिलाएं कई बार असुरक्षित तरह से संबंध बनाने के कारण प्रेग्नेंट हो जाती है। जिससे बचने के लिए गर्भ गिराने के कई उपाय अपनाती है। लेकिन इससे भी फायदा नहीं मिलने पर महिलाएं अपना अबॉर्शन करवाती है जो डॉक्टरों की देखरेख में ही किया जाता है। लेकिन प्रेग्नेंसी के 7वें हफ्ते महिलाएं बिना अबॉर्शन करवाएं भी अपना गर्भ गिरा सकती है।
4. अबॉर्शन की दवाई लेने से पहले और बाद में स्कैन करना अनिवार्य है, जो केवल स्त्री रोग विशेषज्ञ ही कर सकती हैं।
5. इससे आपको किसी तरह के कॉम्प्लिकेशन से बचने में मदद मिलेगी।
गर्भ गिराने के लिए महिलाएं जो अबॉर्शन पिल्स खाती हैं उसके कारण उन्हें पेट में दर्द और ऐंठन होने लगती है। महिलाओं को इस दौरान होने वाला दर्द और ऐंठन पीरियड पैन से भी ज्यादा तेज हो सकता है।
अबॉर्शन पिल्स आपके शरीर में बन रहे प्रेग्नेंसी हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन के उत्पादन को बंद कर देती हैं। जिसके कारण भ्रूण आपके गर्भाशय से बाहर आने लगता है, जिस कारण महिलाओं को ज्यादा ब्लीडिंग होने लगती है। इस ब्लीडिंग की प्रक्रिया कुछ दिनों, हफ्तों से लेकर एक महीने तक भी हो सकती है।
गोली लेने के बाद अक्सर महिलाओं को चक्कर आने लगता हैं। चक्कर आने के साथ महिलाओं को सिरदर्द की भी शिकायत हो सकती है। कभी-कभी सिरदर्द इतना बढ़ जाता है कि महिलाओं को बुखार और शरीर दर्द भी होने लगता है।
अबॉर्शन पिल्स लेने के बाद भी कई बार पूरी तरह गर्भ नहीं गिरता है। अबॉर्शन पिल्स का ये सबसे बड़ा साइड इफेक्ट है। ऐसे मे अगर आपके अंदर ही भ्रूण के टुकड़े रह गए तो यह वायरस और किसी बड़ी बीमारी का कारण भी बन सकता है। इसलिए अबॉर्शन पिल्स लेने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें।