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नई दिल्ली : दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आज कांग्रेस को तीसरा संदेश भेजा. इसमें राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाहों के स्थानांतरण और पोस्टिंग पर उपराज्यपाल का नियंत्रण बहाल करने के लिए केंद्र के प्रस्तावित कानून के खिलाफ समर्थन मांगा गया. पिछले महीने केंद्र ने अध्यादेश के जरिए दिल्ली में नौकरशाहों पर राज्य सरकार के नियंत्रण को बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया था. आम आदमी पार्टी को अब तक इस मुद्दे पर केंद्र के विरोध में कांग्रेस का साथ नहीं मिला है.
अरविंद केजरीवाल केंद्र के कदम को अदालत में चुनौती देने की योजना बना रहे हैं. इसके अलावा वे अपने समर्थन में राजनीतिक दलों को भी एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. वे पहले कांग्रेस के महाराष्ट्र में सहयोगी उद्धव ठाकरे और अनुभवी नेता शरद पवार सहित कई प्रमुख विपक्षी नेताओं से मिल चुके हैं. केजरीवाल आज दक्षिण में कांग्रेस के सहयोगी डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से मिले.
मुलाकात के बाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस में केजरीवाल ने अपना संदेश साफ कर दिया. उन्होंने कहा, "कांग्रेस को इसका समर्थन करना चाहिए. 2024 के चुनावों के लिए एक संयुक्त विपक्ष को लेकर निर्धारित बैठक में विचार किया जा सकता है."
हालांकि, केजरीवाल को कांग्रेस की सहयोगी शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और शरद पवार का समर्थन हासिल हो रहा है. आज स्टालिन राज्यसभा में केंद्र के बिल को रोकने के लिए समर्थन का वादा करते हुए दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार के साथ खड़े हो गए. 'आप' प्रमुख शुक्रवार को झारखंड में कांग्रेस के सहयोगी हेमंत सोरेन से भी मुलाकात करेंगे.
इसके अलावा केजरीवाल को बिहार के मुख्यमंत्री और विपक्षी एकता के लिए वार्ताकार नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख तेजस्वी यादव सहित वाम दलों का समर्थन भी हासिल है.
कांग्रेस पर दबाव बढ़ा रहा
केजरीवाल के समर्थन में आगे आने वाले नेताओं की संख्या बढ़ने से कांग्रेस पर दबाव बढ़ा रहा है. जबकि कांग्रेस वैचारिक मुद्दों और चुनावी मजबूरियों के बीच फंसी हुई है.
केजरीवाल सहित आम आदमी पार्टी के नेताओं के प्रति कांग्रेस की शत्रुता का कारण अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी अभियान रहा है. इस आंदोलन ने 'आप' को दिल्ली में कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार को हटाने में मदद की थी.
तब से लेकर अब तक 'आप' गुजरात, पंजाब और गोवा जैसे राज्यों में कांग्रेस के पॉलिटिकल स्पेस पर काबिज हो चुकी है.
कांग्रेस के दिल्ली के नेताओं ने बार-बार केजरीवाल की पार्टी को "बीजेपी की बी-टीम" कहा है और हर मौके पर 'आप' के समर्थन का विरोध किया है. हालांकि अब दूसरी तरफ से भी दबाव है.
शरद पवार ने कहा- बहस का समय नहीं, लोकतंत्र को बचाना है
शरद पवार ने केजरीवाल से मुलाकात के बाद कहा था, "मेरा विचार है कि अरविंद को गैर-बीजेपी दलों से बात करके समर्थन लेना चाहिए, चाहे वह कांग्रेस हो या बीजेडी... यह बहस का समय नहीं है. लोकतंत्र को बचाना है."
सीपीएम ने अपने मुखपत्र "पीपुल्स डेमोक्रेसी" के माध्यम से एक मजबूत संदेश दिया था. अखबार ने एक संपादकीय में लिखा था, "अध्यादेश जब संसद में कानून बनाने के लिए आए तो राजनीतिक स्तर पर पूरे विपक्ष को एकजुट होकर इसका विरोध करना चाहिए. कांग्रेस पार्टी को अपने रुख के बारे में संदेह करना बंद करना चाहिए. अरविंद केजरीवाल और 'आप' के प्रति दुश्मनी उसकी स्थिति निर्धारित नहीं कर सकती है. यह किसी एक नेता या किसी एक पार्टी के बारे में नहीं है, यह लोकतंत्र और संघवाद पर एक बुनियादी हमला है."
इसमें कहा गया है कि, विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर अध्यादेश का विरोध कैसे करती हैं, इसका भाजपा के खिलाफ बड़ी लड़ाई के लिए एकजुटता पर असर पड़ेगा.
'आप' को राज्यसभा में कांग्रेस का साथ मिलना जरूरी
अगर 'आप' राज्यसभा में सरकार से लड़ने की कोई उम्मीद करती है तो कांग्रेस को साथ लाना जरूरी है. उच्च सदन में कांग्रेस के 31 सांसद हैं जो कि विपक्षी दलों में सबसे बड़ी संख्या है. संवैधानिक संशोधन विधेयक को पारित करने के लिए भाजपा को तीन चौथाई बहुमत, यानी 186 से अधिक सांसदों के की आवश्यकता होगी.
एनडीए के पास वर्तमान में 248 सदस्यीय सदन में 110 सीटें हैं. विपक्ष के पास भी 110 सीटें हैं. यानी अगर सभी पार्टियां दोनों तरफ से साथ आती हैं तो नवीन पटनायक की बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस जैसी तटस्थ पार्टियों की भूमिका अहम हो जाएगी.
राज्यसभा में बीजेडी और वाईएस जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के नौ-नौ सदस्य हैं. यदि वे सरकार को समर्थन देते हैं, तो वे सरकार की ताकत को बढ़ा सकते हैं. मतदान में भाग नहीं लेने और बहिर्गमन की भी संभावना है, जिससे बहुमत का आंकड़ा नीचे आ जाएगा.
श्रीनगर: पोलो व्यू मार्केट कश्मीर घाटी (Kashmir valley) का आजकल हॉटेस्ट पॉइंट है. शाम को ये किसी यूरोपीय देश के मार्केट से कम नहीं लगती. युवा यहां घंटों हैंगआउट करने आते हैं. खाने-पीने, शॉपिंग और मौज-मस्ती का दौर देर रात तक चलता रहता है. ये नया कश्मीर है. यहां अब शाम ढलते ही लोग घरों में नहीं घुस जाते, बल्कि मौज मस्ती करने के लिए बेखौफ बाहर निकलते हैं. पोलो व्यू मार्केट (Polo View Market) को जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) प्रशासन ने स्मार्ट सिटी के तहत विकसित किया है.
जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच सोमवार से G-20 देशों के पर्यटन कार्य समूह (Tourism Working Group) की तीसरी बैठक शुरू हुई. सम्मेलन तीन दिन तक चला. अगस्त 2019 में आर्टिकल 370 खत्म किए जाने और तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने और करीब 37 साल बाद जम्मू-कश्मीर में यह पहली अंतरराष्ट्रीय बैठक थी. भारत इस साल G-20 की अध्यक्षता कर रहा है. देश के तमाम राज्यों में ये बैठकें हो रही हैं. इन शहरों में श्रीनगर को भी चुना गया.
क्या है युवाओं की राय?
श्रीनगर के पोलो व्यू मार्केट में दोस्तों संग आए फरदीन खान बताते हैं, "मैं पॉलीटेक्निक की पढ़ाई कर रहा हूं. मुझे रैप करना पसंद है. यहां आकर अच्छा लगता है. पहले और अब के हालात में बहुत फर्क आ गया है." वहीं, कंप्यूटर साइंस के छात्र गुरप्रीत कहते हैं, "कश्मीर में हालात बेहतर हुए हैं. नौजवानों की आकांक्षाएं बदली हैं." महाराष्ट्र के पुणे से श्रीनगर आए वॉक्स पॉप कहते हैं, "मैं यहां नहीं रहता. पोलो व्यू मार्केट के बारे में बहुत सुना था. इसलिए ये देखने आ गया. आप खुद यहां की रौनक देख लीजिए."
फिर से हो रही फिल्मों की शूटिंग
एक दौर था जब कश्मीर हिंदुस्तान के फिल्मकारों का पसंदीदा लोकेशन हुआ करता था. साठ और सत्तर के दशकों की फिल्मों से हमने कश्मीर के नज़ारों को पहचाना, शिकारों को देखा, उनकी ख़ूबसूरती पर हैरान होते रहे. अस्सी के दशक के बाद कश्मीर का माहौल बदला, तो फिल्मों की दिशा भी बदल गई. मगर एक बार फिर पुरानी हवाएं नई रंगत के साथ लौट रही हैं. वहां, फिल्में फिर से शूट की जा रही हैं. 2021 में जम्मू-कश्मीर में नई फिल्म नीति के एलान के बाद करीब 150 फिल्मों और वेब सीरीज़ की शूटिंग की इजाज़त ली गई. G-20 की बैठक का पहला सत्र फिल्म पर्यटन पर ही केंद्रित रहा.
गुड गवर्नेंस के तहत काम में आई तेजी
पिछले चार सालों में 7.7 लाख नये उद्यमी यहां आए हैं. यानी हर रोज़ 527 युवा जम्मू-कश्मीर की बदलती तस्वीर से जुड़े हैं. जम्मू-कश्मीर प्रशासन का यह भी दावा है कि गुड गवर्नेंस के तहत 2019 के बाद यहां सरकारी कामों में तेज़ी आई है. 2018 में यहां सिर्फ़ 9229 प्रोजेक्ट पूरे हुए. 2022 में 92560 प्रोजेक्ट पूरे किए गए हैं.
बेशक, पिछले कुछ दिनों में आतंकी गतिविधियों की ख़बरें भी आती रहीं. वहां रह रहे कश्मीरी पंडितों को राज्य छोड़ना भी पड़ा. उनमें से कई अब भी आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन कुल मिलाकर माहौल बदला है. कश्मीर में पर्यटन सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं. पर्यटन स्थलों का भी विकास किया जा रहा है.
नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 की जंग जीतने और प्रचंड बहुमत पाने के बाद कांग्रेस में अब मुख्यमंत्री को लेकर मंथन चल रहा है. सीएम की रेस में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है. इस बीच कांग्रेस की तरफ से नियुक्त किए गए तीन सेंट्रल ऑब्जर्वर रिपोर्ट लेकर दिल्ली लौट चुके हैं. ऑब्जर्वर्स ने सभी विधायकों से उनकी राय ली.
मामले से जुड़ी अहम जानकारियां :
कर्नाटक का सीएम कौन होगा, कांग्रेस आलाकमान ने अभी तक इसका ऐलान नहीं किया है. आलाकमान ने सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को दिल्ली बुलाया था. सिद्धारमैया पहले ही दिल्ली पहुंच चुके हैं, जबकि डीके शिवकुमार सोमवार को दिल्ली नहीं पहुंचे. वो मंगलवार को दिल्ली पहुंचेंगे.
डीके शिवकुमार ने कहा कि कांग्रेस के पास 135 विधायक हैं, लेकिन मेरे पास एक भी विधायक नहीं हैं. मैंने फैसला कांग्रेस हाईकमान पर छोड़ दिया है. इससे पहले शिवकुमार ने कहा था- मैं सिंगल मैन मेजॉरिटी हूं.
इस बीच डीके शिवकुमार के भाई और लोकसभा सांसद डीके सुरेश कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मिलने उनके घर पहुंचे हैं. दोनों के बीच क्या बात हुई, मीडिया को इसकी जानकारी तो नहीं दी गई. डीके सुरेश और खरगे मंगलवार को दोबारा मुलाकात करेंगे.
डीके शिवकुमार ने कहा था कि मुझे जो काम सौंपा गया था, वो मैंने पूरा कर दिया है. मुझे नहीं पता, जन्मदिन पर हाईकमान मुझे क्या तोहफा देगा. कर्नाटक के लोग पहले ही हमें नंबर्स दे चुके हैं.
वहीं, रणदीप सुरजेवाला ने बताया कि केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे इस रिपोर्ट को देखने के बाद आगे का फैसला लेंगे. उन्होंने बताया कि पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट गोपनीय है. अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है. अभी तक खरगे से न तो सिद्धारमैया की मुलाकात हुई है और न ही डीके शिवकुमार उनसे मिले हैं.
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, पार्टी नेतृत्व सोच रहा है कि मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा आज या कल तक करके गुरुवार को शपथ करा दी जाए. एक मुख्यमंत्री और एक ही उपमुख्यमंत्री के साथ 24-25 मंत्रियों को भी साथ में ही शपथ दिलाई जा सकती है.
दिल्ली पहुंचने पर कर्नाटक के कांग्रेस प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि कल बैठक में दो प्रस्ताव पारित किए गए. एक धन्यवाद प्रस्ताव था और दूसरे प्रस्ताव से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को अधिकृत किया गया कि वो अगले कांग्रेस विधायक दल के अगले नेता का चयन करें. पर्यवेक्षकों ने सभी से चर्चा की और वो अपनी रिपोर्ट आज रात तक मल्लिकार्जुन खरगे को देंगे.
कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की रविवार शाम बेंगलुरु के एक निजी होटल में हुई बैठक में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर पार्टी अध्यक्ष को विधायक दल का नेता चुनने का अधिकार दिया गया, जो कर्नाटक का अगला मुख्यमंत्री बनेगा.
राज्य में 224 सदस्यीय विधानसभा के लिए 10 मई को हुए चुनाव में कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल करते हुए 135 सीटें अपने नाम कीं. कांग्रेस ने 2018 के मुकाबले 2023 में 80 नई सीटें जीती हैं. जबकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा नीत जनता दल (सेक्युलर) ने क्रमश: 66 और 19 सीटें जीतीं.
रविवार को बेंगलुरु के शांगरी-ला में विधायक दल की मीटिंग हुई. इस दौरान डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया मौजूद थे. सिद्धारमैया ने प्रस्ताव रखा कि मुख्यमंत्री का चुनाव खरगे ही करें.
बेंगलुरु: कर्नाटक चुनाव के नतीजे 13 मई को आने वाले हैं. कई एग्ज़िट पोल्स में कांग्रेस-बीजेपी के पूर्ण बहुमत से दूर रहने और हंग असेंबली की स्थिति का अनुमान जताया गया है. ऐसे में कहा जा रहा है कि जेडीएस किंगमेकर के रूप में बड़ी भूमिका निभा सकती है. ऐसी अटकलें थीं कि सत्ता बनाने के लिए कांग्रेस और बीजेपी नेता जेडीएस से संपर्क कर रही है. लेकिन अब कांग्रेस ने इन अटकलों को खारिज कर दिया है. कांग्रेस ने एचडी कुमारस्वामी की पार्टी से किसी तरह की बातचीत से इनकार कर दिया है. पार्टी ने कर्नाटक में अपने दम पर सरकार बनाने का भरोसा जताया है.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) ने कहा कि उनकी पार्टी प्रचंड बहुमत से चुनाव जीतेगी. शनिवार को नतीजे आने के बाद संख्या के आधार पर पार्टी अपनी रणनीति तय करेगी. NDTV से बात करते हुए मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, "सीटों की संख्या हमें बताएगी कि आगे क्या करना है. हम नतीजों के बाद फैसला लेंगे." खरगे ने बीजेपी के 'ऑपरेशन लोटस' की संभावना पर भी सवाल उठाया. कांग्रेस प्रमुख ने इस बात से भी इनकार किया कि उनकी पार्टी जेडीएस के साथ गठबंधन को लेकर कोई बातचीत कर रही हैं. उन्होंने कहा, "हम किसी के पास नहीं जा रहे हैं."
एग्ज़िट पोल्स में कांग्रेस को बहुमत मिलने का अनुमान
कई एग्ज़िट पोल्स में बुधवार को हुए चुनावों में कांग्रेस को बहुमत मिलने की भविष्यवाणी की गई है. हालांकि, कुछ पोल्स में खंडित जनादेश का भी अनुमान है. ऐसी स्थिति में जेडीएस के किंगमेकर की भूमिका निभाने की संभावना है. 2018 के चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, लेकिन ये बहुमत से पीछे रह गई. कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन की सरकार बनाई. एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन 14 महीने बाद सरकार गिर गई. कांग्रेस-जेडीएस के कई विधायक बीजेपी के पाले में चले गए. बाद में नंबर ज्यादा होने पर बीजेपी ने सरकार बना ली.
तनवीर अहमद ने गठबंधन को लेकर दिया था बयान
गुरुवार को जेडीएस के वरिष्ठ नेता तनवीर अहमद ने तमाम अटकलों के बीच बड़ा बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि यह तय कर लिया गया है कि जेडीएस किसके साथ साझेदारी करेगी. एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में जेडीएस के वरिष्ठ नेता तनवीर अहमद ने बताया कि 'निर्णय ले लिया गया है. जब सही समय आएगा तो हम जनता के सामने इसकी घोषणा करेंगे.
वे किस पार्टी के साथ जाएंगे? इस पर तनवीर ने कहा कि 'उनके साथ, जो लोग राज्य और कन्नडिगाओं की भलाई के लिए काम करने जा रहे हैं'. पार्टी कितनी सीटों पर जीतेगी? इसके जवाब में अहमद ने कहा, 'हमारे बिना कोई भी सरकार नहीं बना सकता है. मुझे लगता है कि यह एक अच्छी संख्या होगी. हम पैसे, शक्ति, बाहुबल के मामले में राष्ट्रीय दलों का मुकाबला नहीं कर सके. हम एक कमजोर पार्टी थे. लेकिन, हम जानते हैं कि सरकार का हिस्सा बनने के लिए हमने काफी मेहनत की है'. हालांकि, कर्नाटक जेडीएस प्रमुख सीएम इब्राहिम ने अहमद के बयान को खारिज करते हुए कहा, "वह हमारे प्रवक्ता नहीं हैं".
डीके शिवकुमार ने भी किया इनकार
उधर, कर्नाटक कांग्रेस प्रमुख डीके शिवकुमार ने भी गठबंधन की अटकलों को खारिज किया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस अपने दम पर सरकार बनाएगी. शिवकुमार ने कहा था कि बीजेपी के जेडीएस के साथ घनिष्ठता पर वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते.