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होली का मजा अगले दिन सजा बनते देर नहीं लगाता, खासकर तब जब अपने मनपसंद और अच्छे कपड़े होली के रंग (Holi Colors) से रंगीन हो गए हों. कपड़ों पर लगे दागों से उन्हें या तो फेंकना पड़ता है या फिर पौछा लगाने के लिए इस्तेमाल में ले लिया जाता है. लेकिन, अब आपको ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है. यहां ऐसे कुछ टिप्स दिए गए हैं जिनकी मदद से आप होली के रंगों से दागदार हुए कपड़ों को आसानी से साफ कर सकेंगे. कोई एक तरीका काम ना आए तो दूसरा या तीसरा तरीका अपनाकर देख ले. दागों (Stains) की छुट्टी हो जाएगी.
कपड़ों से होली के रंग छुड़ाने के टिप्स
सफेद सिरका आधा कप सफेद सिरका (White Vinegar) लें और उसमें एक चम्मच भरकर कोई भी डिटर्जेंट पाउडर मिला लें. इसमें 2 से 3 लीटर पानी मिलाएं और कपड़ों को इस पानी में भिगो दें. इस सिरके और साबुन के पानी से कपड़ों से दाग हटने लगेंगे.
कपड़ों से रंगों के दाग हटाने में नींबू भी बड़े काम का साबित होता है. इसके अम्लीय गुण दागों को हल्का कर देते हैं. इस्तेमाल करने के लिए नींबू के रस (Lemon Juice) को कपड़े पर लगे दाग पर घिसें. पूरा कपड़ा ही दागदार है तो आप नींबू के रस को स्प्रे बोतल में भरकर कपड़े पर छिड़क सकते हैं. इसके बाद हल्के हाथ से कपड़ा रगड़ें. अब जिस तरह आमतौर पर कपड़े धोते हैं बिल्कुल उसी तरह धो लें.
एक कटोरी लेकर उसमें नींबू के रस के साथ नमक मिला लें और इस मिश्रण को कपड़ों की सफाई करने के लिए इस्तेमाल करें. आपको दिखेगा कि कपड़े पर लगे गुलाल और पक्के रंग के निशान (Color Stains) हटने लगे हैं.
बेकिंग सोडा
रंगे हुए कपड़ों की सफाई में बेकिंग सोडा (Baking Soda) बेहद कारगर साबित होता है. इसके इस्तेमाल के लिए बेकिंग सोडा को पानी में मिलाकर घोल तैयार करें और इसे कपड़े पर लगाकर घिसने के बाद धो लें. कपड़ों से दाग-धब्बे हटने लगेंगे.
भारत एक ऐसा देश है जहां पूरे साल भांति-भांति के त्योहार मनाये जाते हैं। एक उत्सव खत्म नहीं होता है और दूसरे त्योहार की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। विशेष बात ये है कि इस देश में त्योहारों के साथ कई तरह की मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। होली भी एक ऐसा ही पर्व है जिसके साथ कई तरह के रीति-रिवाज जुड़े हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि नयी दुल्हन को अपनी पहली होली ससुराल में नहीं मनानी चाहिए। जानते हैं आखिर इसके पीछे क्या कारण है।
ऐसा कहा जाता है कि नयी दुल्हन का ससुराल की पहली होली देखना अशुभ होता है। शादी के बाद नवविवाहिता होली मनाने के लिए अपने मायके चली जाती है। यह मान्यता कई सालों से चली आ रही है। लोगों का कहना है कि सास और बहू का एक साथ जलती हुई होली देखना बहुत अशुभ होता है। इससे दोनों के बीच कलह हो सकती है। भविष्य में ये रिश्तों में अविश्वास पैदा कर सकता है। दोनों को व्यक्तिगत तौर पर कोई नुकसान भी हो सकता है।
सिर्फ नवविवाहिता ही होली का त्योहार मनाने मायके नहीं जाती है बल्कि उसके साथ उसका पति भी जाता है। नया जोड़ा लड़की के घर में अपनी पहली होली खेलता है। ऐसा माना जाता है मायके में अपनी पहली होली साथ मनाने से वैवाहिक जीवन की सुखमय व सुखद शुरुआत होती है।
रिश्ता होता है मजबूत
विवाह के बाद लड़की को अपने ससुराल में ही रहना होता है। मगर शादी के बाद पहली होली लड़के और लड़की के परिवार वालों को मेलजोल बढ़ाने का मौका देता है। दामाद के ससुराल में अपनी पहली होली खेलने को लेकर सभी काफी उत्साहित रहते हैं। ये ससुराल पक्ष के साथ रिश्ता मजबूत करने का बेहतरीन अवसर होता है।
नोट: यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। बोल्डस्काई लेख से संबंधित किसी भी इनपुट या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी और धारणा को अमल में लाने या लागू करने से पहले कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
यूनाइटेड नेशंस ने गुरुवार को अपनी एक रिपोर्ट पेश की है। जिसमें चौंकाने वाला खुलासा सामना आया है। यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 20 सालों में मातृ मृत्यु दर में गिरावट के बाद भी प्रेग्नेंसी के दौरान या डिलीवरी के समय दुनिया भर में हर 2 मिनट में एक महिला की मौत होती है। 2020 में 2 लाख 87 हजार महिलाओं की प्रेग्नेंसी के दौरान मौत हुई है।
भारत में भी मातृ मृत्यु दर में सुधार देखा गया है। लेकिन इसके बावजूद भी भारत मातृ मृत्यु दर के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है। साल 2000 में हर 1 लाख प्रेग्नेंट महिलाओं में 386 महिलाओं की मौत होती थी। साल 2020 में ये आंकड़ा 103 पर आ गया है। भारत में पिछले 20 सालों में प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं की मौत के मामले में 73 प्रतिशत का सुधार हुआ है।
प्रेग्नेंसी के दौरान सबसे ज्यादा मातृ मृत्यु दर के मामले में नाइजीरिया नंबर वन पर है। रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आए उनके अनुसार दुनिया में गर्भावस्था या डिलीवरी के दौरान होने वाली माओं की मौत के मामले में नाइजीरिया सबसे ऊपर हैं जहां 2020 में 82 हजरा महिलाओं की मौत दर्ज की गई थी। ऐसे में दुनिया में होने वाली मातृ मृत्यु दर में 28.5 फीसदी मौतें अकेले नाइजीरिया में दर्ज की गई थी।
प्रेग्नेंसी में महिलाओं की मौत के कारण
1. गर्भावस्था के दौरान ब्लिडिंग होना
2. प्रेग्नेंसी में तनाव बढ़ने के कारण हाई ब्लड प्रेशर
3. समय रहते महिलाओं को अस्पताल और सही इलाज न मिल पाना
4. प्रेग्नेंसी के दौरान किसी तरह का इंफेक्शन होना
5. गलत तरह से कराया गया अबॉर्शन
भोपाल : मध्यप्रदेश के कूनो में दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 चीते शनिवार को पहुंच गए. इससे पहले पिछले साल सितंबर में आठ चीते नामीबिया से लाए गए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 सितंबर की सुबह अपने जन्मदिन पर नामीबिया से लाए गए आठ में से दो चीतों को विशेष बाड़े में छोड़ा था. इसके साथ देश में 70 साल बाद फिर से चीते दिखाई देने लगे.
दक्षिण अफ्रीका के हिंडनबर्ग पार्क में सात नर और पांच मादा चीतों को इस खास बॉक्स में विमान में रखा गया. शुक्रवार, 17 फरवरी की शाम को भारतीय वायुसेना का विशेष विमान दक्षिण अफ्रीका के ओआर टैम्बो एयरपोर्ट से रवाना हुआ. यह विमान शनिवार को सुबह 10 बजे ग्वालियर एयरपोर्ट पर पहुंचा.
इसके बाद 12 चीतों को सेना के चार हेलिकॉप्टरों ने करीब पौने 12 बजे कूनो पहुंचाया. यहां उनका स्वास्थ्य परीक्षण किया गया. फिर करीब 12 बजे दोपहर में उन्हें बाड़ों तक पहुंचाया गया. कूनो में चीते छोड़ते ही पहले वे तेजी से भागे, फिर आगे जाकर रुके और फिर दौड़ने लगे.
चीता परियोजना के प्रमुख एसपी यादव ने कहा कि, सभी चीते स्वस्थ, सक्रिय और पूरी तरह सामान्य हैं. उन सभी को कैद से आजाद कर दिया गया. यह अच्छी खबर है. यह पूरा काम बिना बाधा के पूरा हो गया.
क्वारेंटाइन बोमा, यानी बाड़े में 12 चीतों को रखा जएगा. इसके लिए 10 क्वारेंटाइन बाड़े तैयार किए गए हैं. इनमें आठ नए और दो पुराने हैं. इसके अलावा दो आइसोलेशन वार्ड भी तैयार किए गए हैं. इनमें ही महीने भर उनके खाने-पीने का इंतज़ाम होगा.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस मौके पर कहा कि, महाशिवरात्रि पर मध्यप्रदेश को बड़ी सौगात मिली है. मैं पीएम का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं. पहले जो चीते आए वे इस वातावरण में पूरी तरह ढल चुके हैं. एक साशा अस्वस्थ हुई थी, वह अब पूरी तरह स्वस्थ है.
यह चीते एक महीने क्वारेंटाइन बाड़ों में रहेंगे. केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि, इस प्रोजेक्ट का दूसरा चरण शुरू हो गया है. इसके साथ नामीबिया से आए चीतों का क्वारेंटाइन खत्म हो गया है.
चीतों की देखभाल के लिए वन विभाग ने 450 से ज्यादा चीता मित्र तैयार किए हैं. ग्रामीणों ने कुल्हाड़ी छोड़ने का संकल्प भी लिया है
अब नामीबिया से लाए गए आठ चीतों में से कुछ को खुले जंगल में छोड़ा जा सकता है, जहां उनकी असली परीक्षा होगी, क्योंकि दक्षिण अफ्रीका से आए सारे मेहमान जंगल के माहौल में दूसरे जानवरों से लड़भिड़कर जीते थे लेकिन नामीबिया से आए कुछ मेहमान संरक्षित तरीके से रहने के आदी थे.