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भारतीय डाक ने हाल ही में बंपर भर्ती निकाली है. डाक विभाग ने ग्रामीण डाक सेवकों (GDS) (ब्रांच पोस्टमास्टर/असिस्टेंट ब्रांच पोस्टमास्टर (एबीपीएम)/डाक सेवक) के लगभग 40,000 हजार से ज्यादा पदों पर भर्ती के लिए योग्य उम्मीदवारों से आवेदन मांगा है. अगर अब तक आपने इस बंपर भर्ती के लिए आवेदन नहीं किया है, तो जल्दी करें. कारण कि इस वैकेंसी के लिए आवेदन की अंतिम तिथि नजदीक है. डाक विभाग के इस भर्ती के लिए कल यानी 16 फरवरी 2023 तक अप्लाई किया जा सकता है. आवेदन करने के लिए उम्मीदवार इंडियन पोस्ट की आधिकारिक वेबसाइट indiapostgdsonline.gov.in पर जाएं.
एप्लीकेशन करेक्शन विंडो
कौन कर सकता है अप्लाई
ग्रामीण डाक सेवक की इस बंपर भर्ती के लिए आवेदन करने के लिए उम्मीदवार की उम्र कम से कम 18 साल और अधिकतम 40 साल होनी चाहिए. आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को आयु सीमा में छूट दी गई है. इसके साथ ही उम्मीदवार का मान्यता प्राप्त स्कूल शिक्षा बोर्ड से दसवीं पास होना और साइकिल चलाना आना जरूरी है. कंप्यूटर की जानकारी भी जरूरी है.
आवेदन शुल्क
भारतीय डाक की इस भर्ती के लिए उम्मीदवारों को 100 रुपये का शुल्क भुगतान करना होगा. सभी महिला आवेदकों, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के आवेदकों, पीडब्ल्यूडी आवेदकों और ट्रांसवुमन उम्मीदवारों को शुल्क के भुगतान में छूट दी गई है.
चयन प्रक्रिया
उम्मीदवारों का चयन मेरिट के आधार पर होगा. कक्षा 10वीं में प्राप्त अंकों के आधार पर उम्मीदवारों की मेरिट तैयार की जाएगी.
हर माता पिता चाहता है कि वो अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दे। बच्चों का भविष्य बनाने में अभिभावक ही मुख्य भूमिका निभाता है। बच्चों की सही देखभाल करने को लेकर यदि आप असमंजस की स्थिति में हैं तो आचार्य चाणक्य आपकी मदद कर सकते हैं। कुशल रणनीतिकार और अर्थशास्त्री चाणक्य ने व्यक्ति के जीवन के हर पहलू पर अपने अनमोल विचार दिए हैं। इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि चाणक्य नीति में बच्चों के लालन-पालन को लेकर माता-पिता को क्या सलाह दिए गए हैं।
पांच साल की आयु के बाद
श्लोक के मुताबिक, कौटिल्य कहते हैं कि यदि संतान की आयु पांच साल की है तो अब उसे गलती करने पर डांटना चाहिए। इस आयु में बच्चा चीजों को समझना शुरू कर देता है। इस पड़ाव में बच्चे को प्यार-दुलार के साथ गलतियों पर डांट भी पड़नी चाहिए।
विष्णु गुप्त के अनुसार, दस से पंद्रह साल के बच्चों के साथ बर्ताव में सख्ती की जा सकती है। ये वो उम्र होती है जब वो जिद करना शुरू कर देते हैं। यदि संतान गलत बातों के लिए हट करता है तो उसे सख्ती से समझाना चाहिए। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि माता पिता गलत शब्दों का इस्तेमाल न करें।
बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है उसकी समझदारी भी बढ़ने लगती है। चाणक्य कहते हैं कि जब बच्चा सोलह बरस पूरे कर ले तब उसके साथ एक दोस्त जैसा व्यवहार करना चाहिए। उसे डांट-डपटकर चुप कराने के बजाय बातचीत करके उसे समझाना चाहिए।
नोट: यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। बोल्डस्काई लेख से संबंधित किसी भी इनपुट या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी और धारणा को अमल में लाने या लागू करने से पहले कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
हर साल भारत में 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत भारत के महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2008 में की गई थी। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लड़कियों के खिलाफ भेदभाव पूर्ण स्थिति को खत्म करना, उन्हें विकास की दिशा प्रदान करना, लड़कों के बराबर के अधिकार प्रदान करना और उनके खिलाफ हो रहे अपराधों को रोकना है। लड़कियों को लेकर एक गहरी मानसिकता है कि लड़कियों को अधिक पढ़ाना ठीक नहीं है, लड़कियों को घर से बाहर नहीं जाना चाहिए आदि। इस मानसिकता को बदलने की अधिक आवश्यकता है। समय के साथ इस मानसिकता में बदलाव तो देखा जा रहा है, लेकिन लड़कियों के खिलाफ हो रहे अपराधों में कोई खास कमी नहीं देखी गई है। लेकिन ये भी सच है कि अब पहले की तुलना में लड़किया उच्च से उच्च शिक्षा प्राप्त कर पा रही हैं। अपना करियर बना रही है और देश के हर क्षेत्र में अपना नाम बना रही हैं।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना
इस योजना का महत्व है बेटियों/लड़कियों के प्रति लोगों के बीच पनप रही खराब मानिसिकता को बदलना और उनके विकास और देश के विकास के लिए उनकी शिक्षा पर जोर देना है। साथ ही लोगों में सामूहिक चेतना को जगाना है।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना का कुछ असर तो देखने को मिलता है। जहां एक समय था कि लड़कियों को पैदा भी नहीं होने दिया जाता था पढ़ना-लिखान तो दूर की बात है। वहीं आज एक समय है कि लड़कियों पढ़ भी रही हैं और अपने विकास के साथ ही साथ देश के विकास की ओर बढ़ भी रही हैं। आइए आपको पिछले कुछ सालों के लिंग अनुपात के माध्यम से समझाएं।
वर्ष 2014-15 में लिंग अनुपात दर भारत में 918 थी जिसमें वर्ष 2020-21 में 19 अंकों का सुधार देखने को मिला है। जनवरी 2021 में स्कूलों में भी इसका असर देखने को मिला जहां पहले स्कूलों में लड़कियों के नामंकन का अनुपात 77.45 था वह वर्ष 2021 में बढ़कर 81.23 हो गया। इसी के साथ आपको बता दें कि 2014 से 2018 में 5 वर्ष के आयु की बच्चियों की मृत्यु दर में भी कमी देखी गई है। जहां 2014 में मृत्यु दर 45 थी वहीं 2018 में ये दर गिर कर 36 हो गई। जब हर क्षेत्र की बात की जा रही है तो आपके लिए ये जानन आवश्यक है कि संस्थागत प्रसव में भी सुधार देखने को मिला है, जिसमें 2014-15 में 87 प्रतिशत लड़कियां उच्च शिक्षा के लिए एनरोल हुई थी और वर्ष 2020-21 में प्रतिशत बढ़ कर 94.8 प्रतिशत का हो गया है। यानी 2015 से 2020 तक में उच्च शिक्षा में लड़कियों की एनरोलमेंट प्रतिशत में 18 प्रतिशत की बढ़ते देखी गई है।
इस योजना में आगे बढ़ाने और इसके बारे में बेटियों को बताने और उन्हें मनाने के लिए एक अभियान की शुरुआत की गई थी। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि लड़कियों का जन्म, उनका अच्छा पालन-पोषण और शिक्षा उन्हें बिना किसी भेदभाव के मिले। ताकि आगे चलकर वह एक सश्कत नागरिक बने और देश के निर्माण की दिशा में कार्य करें। हर क्षेत्र में अपना योगदान दें और उनकी उपस्थिति को हर क्षेत्र में दर्ज किया जा सकें। इस मुद्दे को बढ़ावा देने और योजना के उद्देश्य को समझाने के लिए, लोगों में जागरूकता पैदा करने और सूचना का प्रसारण सही ढंग से करने के लिए 360 मिडिया दृष्टिकोण को अपनाया गया।
इस योजना को पूरा सफल बनाने के लिए क्या-क्या किया गया
• मिडिया के माध्यम से क्षेत्रीय भाषा में रेडियो स्पॉट या जिंगल चलाए गए।
• आउटडोर और प्रिंट मिडिया का सहारा लिया गया।
• टेलीविजन पर योजना का प्रचार किया गया।
• महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय, विकास मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रलाय की वेबसाइट, माई गवर्नमेंट एप, विकासपीडिया जैसी कई सोशल मिडिया प्लेटफॉर्म का प्रयोग किया गया ताकि योजना को लेकर जागरूकता फैलाई जा सकें।
• मोबाइल प्रदर्शनी लगाई गई।
• अंग्रेजी और हिंदी भाषा के साथ क्षेत्रीय भाषाओं में एसएमएस अभियान की शुरुआत की गई।
• ई-मेल, ब्रोशर, हैंड-आउट्स, होर्डिंग आदि का प्रयोग कर योजना के बारे में जानकारी देने का प्रयास किया गया।
भोपाल : Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के उमरिया जिले की जोधइया बाई बैगा उन 91 लोगों में शुमार हैं जिन्हें इस बार पद्म श्री से नवाजा जाएगा. 84 वर्ष उम्र पार कर चुकीं जोधइया बाई ने रंगों से अपनी और उमरिया जिले की अलग पहचान बनाई है लेकिन उसी ज़िले में वे एक अदद आवास के लिये तरस रही हैं. उनका कहना है कि पिछले साल प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान भी उन्होंने इसका ज़िक्र किया था, लेकिन अभी तक आवास नहीं मिला, वहीं प्रशासन का कहना है उनका नाम लिस्ट में नहीं है. जोधइया अम्मा ने कहा, "मैं हाथ जोड़कर बोलती हूं. मोदीजी, शिवराजजी से मुझे मकान दे दो, मैं बहुत गरीब हूं अकेले न बना खा सकती हूं, मैं कहां रहूं."
जोधइया अम्मा उमरिया ज़िले के लोढ़ा गांव में मड़ैय्या में रहती हैं. इस उम्र में कूची ने कमाल किया है. राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सम्मानित हुईं, अब पद्मश्री मिला है लेकिन इस उम्र में बर्तन भी मांजती हैं, घर में झाड़ू भी लगाती हैं. उनके संघर्ष की कहानी 14 साल की उम्र में शादी से शुरू हो गई. पति की मौत के बाद दो बच्चों को पाला, मज़दूरी की, पत्थर तोड़े, देसी शराब भी बेची. 70 साल की उम्र में शांति निकेतन के आशीष स्वामी से मिलीं. 2008 में जनगण तस्वीर खाना से कूची पकड़ी, फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. आवास को लेकर कहती हैं, "अधिकारियों, मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक ने आश्वासन दिया लेकिन घर नहीं मिला. उमरिया गई, भोपाल गई. भारत भवन में भी बोला. पिछले साल मोदीजी ने बोल दिया मिल जाएगा तुम्हारा मकान लेकिन आज तक नहीं मिला. मैं हाथ जोड़कर मोदीजी, शिवराजजी से बोलती हूं, मकान दे दो."
जोधइया अम्मा के परिवार में दो बेटे-बहू और नाती हैं. दोनों बेटे मजदूरी करते हैं. बेटों को आवास मिला है, प्रधानमंत्री आवास के नियम कहते हैं कि आवास योजना ग्रामीण के लिए आवेदन करने वाला गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाला होना चाहिए. आवेदक के नाम पर देश में कही भी पक्का मकान नहीं होना चाहिए. आवेदन करने वाले परिवार की वार्षिक आय 3 लाख से 6 लाख के बीच होना चाहिए. आवास योजना के तहत एक परिवार में केवल एक ही आवास निर्माण किया जाएगा. ऐसे में प्रशासन का कहना है, वो मजबूर है, सीईओ जनपद पंचायत केके रैकवार ने कहा,"इनका परीक्षण मैंने किया है. राज्य डाटा सूची में इनका नाम नहीं है. आवास प्लस में भी नाम नहीं है. इनके दो बेटों को लाभ मिला है. सरकार की अन्य स्कीम उज्जवला का लाभ मिला है, पेंशन मिली है. शासन की जो नीति है उसमें स्टेट डाटा या आवास प्लस में नाम जरूरी है इस संबंध में शासन को निर्णय लेना है.".
जोधइया अम्मा इस उम्र में अपनी कूची से दुनियां में रंग भर रही हैं, लेकिन बेरंग नियम उनके सपनों के आड़े आ रहे हैं. भोपाल में मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में जोधइया अम्मा के नाम से एक पक्की दीवार बनी है लेकिन दुर्भाग्य देखिये सत्ता के शीर्ष से आश्वासन मिलने के बाद भी उनके खाते में एक पक्की दीवार नहीं आई जिन पर सिर्फ उनका नाम लिखा हो.अब शासन को तय करना है, पद्मश्री जोधइया अम्मा के लिये क्या नियम शिथिल होंगे.